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{{KKGlobal}}{{KKParichayKKRachna|चित्ररचनाकार=Jnt.jpeg|नाम= जगन्नाथ त्रिपाठी|उपनाम= जलज|जन्म=04 फ़रवरी 1942 |जन्मस्थान= ग्राम शिवली जिला कानपुर ,उ.प्र |मृत्यु=|कृतियाँ=[[करुणालय (काव्य संग्रह) / जगन्नाथ त्रिपाठी ]]|विविध= उर्दू के कान्फ्रेन्सों में सहभागिता ,आल इण्डिया इसलामिक जलसों में इतस्ततः उर्दू में तकरीरें । g|अंग्रेज़ीनाम=Jagannath tripathi|जीवनी=[[ जगन्नाथ त्रिपाठी / परिचय]]
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<poem>
 
टूटी पायल से बिखरे मेरे छन्द-बन्ध!!
 
 
करुणे !
तम घिरी अमावश्या में
आयीं मेरे जीवन-गृह में
आलोक-भविष्यत् बनकर।।
करुणाकर! मैं कृतकृत्य हुआ तेरी करुणा को पाकर कामना यही है करुणा का विस्तार अमित हो भूतल पर।। 
मानवी-सृष्टि करुणा-प्रधान
जग का स्रष्टा करुणामय है
करुणा भावों में श्रेष्ठ भाव
कवि-हृदय स्वयं करुणालय है।।
 
ओ दीन-कुटी की आवासिनि !
संतों की सुधामयी बाणी
कातर पुकार चिर बिरही की।।
ओ विप्र-हृदय की साम्राज्ञी! मेरे अन्वेषण की रानी हो तुम्ही कुमारी मानवता अन्तस्सौन्दर्यमयी रमणी।। 
ओ क्षमा-दया की मलय-निलय
छायावादी कवि की आश्रय,
उद्भ्रान्त-क्लान्त पथिकों की
हे, शीतल सुखमय विश्रामालय।।
ओ जग की धातृ-विघातृ-मातृ ! तुम रूप मानवी धारण कर बस जाओ मेरे तन-मन में, लावण्यमयी छवि बनकर।। 
भोले स्वरूप में अमिय-सृष्टि
कोमल वाणी में सुमन-वृष्टि
नख से शिख ‘ करुण रसः एको ’
गम्भीर दूर-दर्शिणी दृष्टि!!
साहचर्य लाभ तेरा पाकर मैं स्वयं हो गया धन्य-धन्य। अद्वैत-भाव से प्रेम-लीन मैं तुझमें, तू मुझमें अनन्य।। 
इस पीत-पराग ‘जलज‘ में
मृदु मकरन्दोत्सव बनकर
कर दिया सुगंधित जीवन
सुषमा-सौरभ विखराकर।।
मैं ‘ शुष्को वृक्षः तिष्ठति अग्रे ’ था इसके पहले मिलते ही ‘नीरस तरुवर विलसति पुरतः हूँ , अबले !! तरु-शिखरों सी उच्चाकाँक्षाएँ लेकर इस जीवन में मघुऋतु की मदिर माघुरी-सी तुम महक उठो मन-मन में।। 
गूँजे करुणा॰जलि मेरी
करुणा के करुणा॰चल में