"बिके प्यादों से हम सरकार का बहुमत जुटाते हैं / जयकृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर
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− | इलेक्शन में हुनर, जादूगरी सब देखिए इनकी | + | इलेक्शन में हुनर, जादूगरी सब देखिए इनकी |
− | ये हर भाषण में सड़कें और टूटे पुल बनाते | + | ये हर भाषण में सड़कें और टूटे पुल बनाते हैं । |
− | चलो मिल जाएगी उस | + | चलो मिल जाएगी उस वक़्त पे दो वक़्त की रोटी |
− | हम इस मकसद से | + | हम इस मकसद से ज़िन्दाबाद के नारे लगाते हैं । |
− | हमारा सच कभी देखा नहीं है इनकी | + | हमारा सच कभी देखा नहीं है इनकी आँखों ने |
− | हमारे रहनुमा किस रंग का चश्मा | + | हमारे रहनुमा किस रंग का चश्मा लगाते हैं । |
− | अभी हर | + | अभी हर शख़्स के घर का पता मालूम हैं इनको |
− | सदन में जाके ये पूरा इलाका भूल जाते | + | सदन में जाके ये पूरा इलाका भूल जाते हैं । |
− | पुरानी साइकिल, हाथी, कमल, पंजा नया क्या है | + | पुरानी साइकिल, हाथी, कमल, पंजा नया क्या है |
− | हमें हर बार ये देखा हुआ सर्कस दिखाते | + | हमें हर बार ये देखा हुआ सर्कस दिखाते हैं । |
− | हमारे वोट से संसद में नाकाबिल | + | हमारे वोट से संसद में नाकाबिल पहुँचते हैं |
− | जो काबिल हैं गुनाहों से हमारे हार जाते | + | जो काबिल हैं गुनाहों से हमारे हार जाते हैं । |
− | वो साहब हैं उन्हें हर काम के | + | वो साहब हैं उन्हें हर काम के ख़ातिर हैं चपरासी |
− | हम अपना बोझ अपने हाथ से सिर पर उठाते | + | हम अपना बोझ अपने हाथ से सिर पर उठाते हैं । |
− | तबाही देखते हैं वो हमारी वायुयानों से | + | तबाही देखते हैं वो हमारी वायुयानों से |
− | हम दरिया में बिना कश्ती के ही गोता लगाते | + | हम दरिया में बिना कश्ती के ही गोता लगाते हैं । |
− | जो सत्ता में है वो सूरज उगा लेते हैं रातों को | + | जो सत्ता में है वो सूरज उगा लेते हैं रातों को |
− | हमारे घर दीये बस | + | हमारे घर दीये बस साँझ को ही टिमटिमाते हैं । |
− | + | भँवर में घूमती कश्ती के हम ऐसे मुसाफ़िर हैं | |
− | न हम इस पार आते हैं न हम उस पार जाते | + | न हम इस पार आते हैं न हम उस पार जाते हैं । |
− | ये संसद हो | + | ये संसद हो गई बाज़ार इसके मायने क्या हैं |
− | बिके प्यादों से हम सरकार का बहुमत जुटाते | + | बिके प्यादों से हम सरकार का बहुमत जुटाते हैं । |
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14:18, 9 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण
सभी सरसब्ज़ मौसम के नये सपने दिखाते हैं
हमें मालूम है वो किस तरह वादे निभाते हैं ।
इलेक्शन में हुनर, जादूगरी सब देखिए इनकी
ये हर भाषण में सड़कें और टूटे पुल बनाते हैं ।
चलो मिल जाएगी उस वक़्त पे दो वक़्त की रोटी
हम इस मकसद से ज़िन्दाबाद के नारे लगाते हैं ।
हमारा सच कभी देखा नहीं है इनकी आँखों ने
हमारे रहनुमा किस रंग का चश्मा लगाते हैं ।
अभी हर शख़्स के घर का पता मालूम हैं इनको
सदन में जाके ये पूरा इलाका भूल जाते हैं ।
पुरानी साइकिल, हाथी, कमल, पंजा नया क्या है
हमें हर बार ये देखा हुआ सर्कस दिखाते हैं ।
हमारे वोट से संसद में नाकाबिल पहुँचते हैं
जो काबिल हैं गुनाहों से हमारे हार जाते हैं ।
वो साहब हैं उन्हें हर काम के ख़ातिर हैं चपरासी
हम अपना बोझ अपने हाथ से सिर पर उठाते हैं ।
तबाही देखते हैं वो हमारी वायुयानों से
हम दरिया में बिना कश्ती के ही गोता लगाते हैं ।
जो सत्ता में है वो सूरज उगा लेते हैं रातों को
हमारे घर दीये बस साँझ को ही टिमटिमाते हैं ।
भँवर में घूमती कश्ती के हम ऐसे मुसाफ़िर हैं
न हम इस पार आते हैं न हम उस पार जाते हैं ।
ये संसद हो गई बाज़ार इसके मायने क्या हैं
बिके प्यादों से हम सरकार का बहुमत जुटाते हैं ।