भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"काली पट्टी दिखती/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Sheelendra (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
हर उंगली भोली चिड़िया के | हर उंगली भोली चिड़िया के | ||
पंख कतरती है, | पंख कतरती है, | ||
− | राजा | + | राजा की आँखों पर काली |
पट्टी दिखती है । | पट्टी दिखती है । | ||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
थाने के अन्दर अबला की | थाने के अन्दर अबला की | ||
इज़्ज़त लुटती है । | इज़्ज़त लुटती है । | ||
− | + | ||
इनकी मरा आँख का पानी | इनकी मरा आँख का पानी | ||
तो वो अंधे हैं, | तो वो अंधे हैं, | ||
पंक्ति 32: | पंक्ति 32: | ||
ख़बर निकलती है । | ख़बर निकलती है । | ||
− | राजा | + | राजा की आँखों पर काली |
पट्टी दिखती है । | पट्टी दिखती है । | ||
</poem> | </poem> |
19:32, 28 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण
हर उंगली भोली चिड़िया के
पंख कतरती है,
राजा की आँखों पर काली
पट्टी दिखती है ।
अंधी नगरी, चौपट राजा,
शासन सिक्के का,
हर बाज़ी पर कब्ज़ा दिखता
ज़ालिम इक्के का,
राजनीति की चिमनी गाढ़ा
धुआँ उगलती है ।
मारकीन का फटा अंगरखा
धोती गाढ़े की,
आसमान के नीचे कटतीं
रातें जाड़े की,
थाने के अन्दर अबला की
इज़्ज़त लुटती है ।
इनकी मरा आँख का पानी
तो वो अंधे हैं,
खाल पराई से घर भरना
सबके धंधे हैं
अख़बारों में रोज़ लूट की
ख़बर निकलती है ।
राजा की आँखों पर काली
पट्टी दिखती है ।