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"राजा अंधा है/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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सन की दाढ़ी है, | सन की दाढ़ी है, | ||
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यारी गाढ़ी है, | यारी गाढ़ी है, | ||
मंदिर का हर एक पुजारी | मंदिर का हर एक पुजारी |
21:29, 28 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण
इस बस्ती का आलम यारों
बड़ा निराला है,
साँपों के भी पड़ी गले में
स्वागत माला है ।
तेल चमेली का लगता है
यहाँ छछूंदर के,
काली बिल्ली नोच रही है
पंख कबूतर के,
दीपक पी जाता ख़ुद ही
अपना उजियाला है ।
जैसा मियाँ काठ का वैसी
सन की दाढ़ी है,
चोर सिपाही की आपस में
यारी गाढ़ी है,
मंदिर का हर एक पुजारी
पीता हाला है ।
अपना उल्लू सीधा करना
सबका धंधा है,
किससे हाल कहें नगरी का
राजा अंधा है,
पढ़े लिखों के मुँह सुविधा का
लटका ताला है ।
इस बस्ती का आलम यारों
बड़ा निराला है ।