भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सिखवति चलन जसोदा मैया / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} राग बिलावल सिखवति चलन जसोदा मैया ।<br> अरबराइ ...)
 
 
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
सूरदास स्वामी की लीला, अति प्रताप बिलसत नँदरैया ॥<br><br>
 
सूरदास स्वामी की लीला, अति प्रताप बिलसत नँदरैया ॥<br><br>
  
भावार्थ :-- माता यशोदा (श्यामको) चलना सिखा रही हैं । जब वे लड़खड़ाने लगते हैं,तब उसके हाथोंमें अपना हाथ पकड़ा देती हैं, डगमगाते चरण वे पृथ्वीपर रखते हैं । कभीउनका सुन्दर मुख देखकर माताका हृदय आनन्द से पूर्ण हो जाता है वे बलैया लेने लगती हैं । कभी कुल-देवता मनाने लगती हैं कि `मेरा कुँवर कन्हाई चिरजीवी हो ।' कभी पुकारकर बलरामको बुलाती हैं (और कहती हैं-) `दोनों भाई इसी आँगनमें मेरे सामने खेलो । `सूरदासजी कहते हैं कि मेरे स्वामीकी यह लीला है की श्रीनन्दरायजीका प्रताप और वैभवअत्यन्त बढ़ गया है ।
+
भावार्थ :-- माता यशोदा (श्याम को) चलना सिखा रही हैं । जब वे लड़खड़ाने लगते हैं,तब उसके हाथों में अपना हाथ पकड़ा देती हैं, डगमगाते चरण वे पृथ्वी पर रखते हैं । कभी उनका सुन्दर मुख देखकर माता का हृदय आनन्द से पूर्ण हो जाता है वे बलैया लेने लगती हैं । कभी कुल-देवता मनाने लगती हैं कि `मेरा कुँवर कन्हाई चिरजीवी हो ।' कभी पुकार कर बलराम को बुलाती हैं (और कहती हैं-) `दोनों भाई इसी आँगन में मेरे सामने खेलो । `सूरदास जी कहते हैं कि मेरे स्वामी की यह लीला है की श्रीनन्दराय जी का प्रताप और वैभव अत्यन्त बढ़ गया है ।

20:37, 28 सितम्बर 2007 के समय का अवतरण

राग बिलावल


सिखवति चलन जसोदा मैया ।
अरबराइ कर पानि गहावत, डगमगाइ धरनी धरै पैया ॥
कबहुँक सुंदर बदन बिलोकति, उर आनँद भरि लेति बलैया ।
कबहुँक कुल देवता मनावति, चिरजीवहु मेरौ कुँवर कन्हैया ॥
कबहुँक बल कौं टेरि बुलावति, इहिं आँगन खेलौ दोउ भैया ।
सूरदास स्वामी की लीला, अति प्रताप बिलसत नँदरैया ॥

भावार्थ :-- माता यशोदा (श्याम को) चलना सिखा रही हैं । जब वे लड़खड़ाने लगते हैं,तब उसके हाथों में अपना हाथ पकड़ा देती हैं, डगमगाते चरण वे पृथ्वी पर रखते हैं । कभी उनका सुन्दर मुख देखकर माता का हृदय आनन्द से पूर्ण हो जाता है वे बलैया लेने लगती हैं । कभी कुल-देवता मनाने लगती हैं कि `मेरा कुँवर कन्हाई चिरजीवी हो ।' कभी पुकार कर बलराम को बुलाती हैं (और कहती हैं-) `दोनों भाई इसी आँगन में मेरे सामने खेलो । `सूरदास जी कहते हैं कि मेरे स्वामी की यह लीला है की श्रीनन्दराय जी का प्रताप और वैभव अत्यन्त बढ़ गया है ।