"आया समय उठो तुम नारी / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान }} {{KKCatNavgeet}} <poem> '''आया सम…) |
Sheelendra (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
अपनी संस्कृति की | अपनी संस्कृति की | ||
आहट हो स्वर्णिम आगत की | आहट हो स्वर्णिम आगत की | ||
− | + | तुम्हे नया इतिहास देश का | |
− | अपने | + | अपने कर्मो से रचना है |
दुर्गा हो तुम | दुर्गा हो तुम | ||
− | + | लक्ष्मी हो तुम | |
सरस्वती हो सीता हो तुम | सरस्वती हो सीता हो तुम | ||
सत्य मार्ग | सत्य मार्ग | ||
पंक्ति 36: | पंक्ति 36: | ||
तुम प्रतीक हो अवतारी हो | तुम प्रतीक हो अवतारी हो | ||
वक्त पड़े तो | वक्त पड़े तो | ||
− | + | लक्ष्मीबाई | |
वक्त पड़े तो झलकारी हो | वक्त पड़े तो झलकारी हो | ||
− | आँधी हो तूफान | + | आँधी हो तूफान घिरा हो |
पथ पर कभी नहीं रूकना है | पथ पर कभी नहीं रूकना है | ||
21:13, 4 मार्च 2012 का अवतरण
आया समय उठो तुम नारी
आया समय
उठो तुम नारी
युग निर्माण तुम्हें करना है
आजादी की खुदी नींव में
तुम्हें प्रगति पत्थर भरना है
अपने को
कमजोर न समझो
जननी हो सम्पूर्ण जगत की
गौरव हो
अपनी संस्कृति की
आहट हो स्वर्णिम आगत की
तुम्हे नया इतिहास देश का
अपने कर्मो से रचना है
दुर्गा हो तुम
लक्ष्मी हो तुम
सरस्वती हो सीता हो तुम
सत्य मार्ग
दिखलाने वाली
रामायण हो गीता हो तुम
रूढ़ि विवशताओं के बन्धन
तोड़ तुम्हें आगे बढ़ना है
साहस , त्याग
दया ममता की
तुम प्रतीक हो अवतारी हो
वक्त पड़े तो
लक्ष्मीबाई
वक्त पड़े तो झलकारी हो
आँधी हो तूफान घिरा हो
पथ पर कभी नहीं रूकना है
शिक्षा हो या
अर्थ जगत हो
या सेवाऐ हो सरकारी
पुरूषों के
समान तुम भी हो
हर पद की सच्ची अधिकारी
तुम्हें नये प्रतिमान सृजन के
अपने हाथों से गढ़ना है