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"टेलीकॉम / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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− | |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
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− | <Poem>
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− | तरह-तरह के स्वर दूतों से
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− | संवादों की जुड़ी कड़ी
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− | टेलीकॉम जोड़ता ग्राहक
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− | अपने सस्ते प्लानों से
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− | नये प्रलोभन देता रहता
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− | अपनी मीठी तानों से
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− | फसती रहती जनता भोली
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− | सम्मोहित जब करे छड़ी
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− | कुछ तो लाभ हुआ जनता का
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− | जबसे टैरिफ वार हुआ
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− | लेकिन सच है कंपनियों ने
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− | हरदम लूटा माल-पुआ
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− | ग्राफ बढ़ा है कंपनियों का
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− | जबसे आ मैदान खडीं
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− | खून- पसीना बनकर बहता
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− | बटुआ दे हम बतियाते
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− | नहीं आंकलन कर पाए हैं
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− | हलके अपने क्यों खाते?
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− | जगे हुए को कौन जगाये
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− | जब हो औंधी पड़ी घड़ी!
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12:54, 18 मार्च 2012 के समय का अवतरण