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"जुगत भिड़ाते दल / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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सत्ता पर काबिज होने को  
+
सत्ता पर काबिज  
जुगत भिड़ाते दल  
+
होने को  
करें सियासी सौदेबाजी
+
कट-मर जाते दल  
 +
आज सियासत-
 +
सौदेबाजी
 
जनता में हलचल  
 
जनता में हलचल  
  
हवा चुनावी गाँव-शहर में
+
हवा चुनावी,
डोले-बतियाये
+
आश्वासन के 
 +
लड्डू दिखलाए 
 
खलनायक भी नायक बनकर  
 
खलनायक भी नायक बनकर  
मंचों पर छाये
+
संसद पर छाए 
  
बड़े-बड़े मिल वादे करते
+
कैसे झूठ खुले-
भरके गंगाजल
+
अँजुरी में
 +
भरते गंगा-जल
  
इन सीधी-सादी नष्लों को
+
लाद दिये
खांचों में बाँटा
+
पिछले वादों पर
फूल रखे अपनी झोली में
+
और नये कुछ वादे
औरों को कांटा
+
चिंताओं का बोझ जिन्दगी
 +
कोइ कब तक लादे
  
वोट-नोट की राजनीति में
+
जिये-मरे
शुचिता गयी निकल!
+
ये काम न आये,
 +
बेमतलब, बेहल
  
वही चुनावी मुद्दे लेकर  
+
वही चुनावी  
ये घर-घर आये
+
मुद्दा लेकर  
सकारात्मक बदलावों के
+
वे फिर घर आए
सपने दिखलाये 
+
मन को छूते बदलावों के
 +
सपने दिखलाए
  
दल-दल के अपने प्रपंच हैं
+
हैं प्रपंच, ये पंच
अपने-अपने छल  
+
स्वयं के
 +
कैसे-कैसे छल
 
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09:26, 19 मार्च 2012 के समय का अवतरण

सत्ता पर काबिज
होने को
कट-मर जाते दल
आज सियासत-
सौदेबाजी
जनता में हलचल

हवा चुनावी,
आश्वासन के
लड्डू दिखलाए
खलनायक भी नायक बनकर
संसद पर छाए

कैसे झूठ खुले-
अँजुरी में
भरते गंगा-जल

लाद दिये
पिछले वादों पर
और नये कुछ वादे
चिंताओं का बोझ जिन्दगी
कोइ कब तक लादे

जिये-मरे
ये काम न आये,
बेमतलब, बेहल

वही चुनावी
मुद्दा लेकर
वे फिर घर आए
मन को छूते बदलावों के
सपने दिखलाए

हैं प्रपंच, ये पंच
स्वयं के
कैसे-कैसे छल