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<Poem>
सत्ता पर काबिज होने को जुगत भिड़ाते कट-मर जाते दल करें सियासी आज सियासत-सौदेबाजी
जनता में हलचल
हवा चुनावी गाँव-शहर में,डोले-बतियायेआश्वासन के लड्डू दिखलाए
खलनायक भी नायक बनकर
मंचों संसद पर छाये छाए
बड़ेकैसे झूठ खुले-बड़े मिल वादे करतेभरके गंगाजलअँजुरी में भरते गंगा-जल
इन सीधी-सादी नष्लों कोलाद दिये खांचों में बाँटापिछले वादों पर फूल रखे अपनी झोली मेंऔर नये कुछ वादे औरों को कांटा चिंताओं का बोझ जिन्दगी कोइ कब तक लादे
वोटजिये-नोट की राजनीति में मरे शुचिता गयी निकल!ये काम न आये,बेमतलब, बेहल
वही चुनावी मुद्दे मुद्दा लेकर ये घर-वे फिर घर आयेआए सकारात्मक मन को छूते बदलावों केसपने दिखलाये दिखलाए
दल-दल के अपने प्रपंच हैं प्रपंच, ये पंचस्वयं के अपनेकैसे-अपने कैसे छल
</poem>
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