भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रयास / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
उन राहों पर भी
 
उन राहों पर भी
 
जिनमें कंटक छहरे  
 
जिनमें कंटक छहरे  
तोड़ सकूँ चट्टान को भी
+
तोड़ सकूँ  
 +
चट्टानों को भी
 
गड़ी हुई जो गहरे  
 
गड़ी हुई जो गहरे  
  
पंक्ति 24: पंक्ति 25:
 
चलकर जीवन-जल दूँ
 
चलकर जीवन-जल दूँ
 
दबे और कुचले पौधों को
 
दबे और कुचले पौधों को
हरा-भरा नव-दल दूँ
+
हरा-भरा  
 +
नव-दल दूँ
  
 
हर विपदा में-
 
हर विपदा में-

09:35, 19 मार्च 2012 के समय का अवतरण

मेरी कोशिश
सूखी नदिया में-
बन नीर बहूँ मैं

चल पाऊँ
उन राहों पर भी
जिनमें कंटक छहरे
तोड़ सकूँ
चट्टानों को भी
गड़ी हुई जो गहरे

हर राही
मंजिल पा जाए
ऐसी राह बनू मैं

थके हुए को
हर प्यासे को
चलकर जीवन-जल दूँ
दबे और कुचले पौधों को
हरा-भरा
नव-दल दूँ

हर विपदा में-
चिन्ता में
सबके साथ दहूँ मैं

जहाँ-जहाँ पर
रेत अड़ी है
मेरी धार बहाए
नाव चले तो
मुझ पर ऐसी
दोनों तीर मिलाए

ऊसर-बंजर तक
जा-जाकर
सबके चरण गहूँ मैं