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नहीं दिखाई देती गौरैया
आज हमारे शहरों में
नहीं दीखती अब गौरैयागाँव-गली-घर या शहरों में छत-मुँडेर पर, गाँव-खेत में
चिड़ीमार ने जाल बिछाए
पकड़-पकड़ कर ,पिंजड़ों में धर
चिड़ियाघर में उसको लाए
अब सुधिया कभी दिखे ना कोईआतेबुत-जाते बहरों से लगते चेहरों में
डरी हुई सहमी-सी बैठी गौरैया
टूटे पर अपने सहलाए
दम घुटता है साँसें दुखतींछुट उड़ जाने की आस जगाए
गोते खाती रहती है छिन-पलछिनअंदर-बाहर की लहरों में
दाना भी है, पानी भी है
मीठे बोल, रवानी भी है
पराधीनता में दुख-ही-दुखसुख कैसा?
बात सभी ने जानी भी है
यहाँ सभी चुप हैं राजा-रानी,सभी यहाँ चुप रखकर उसको पहरों में?!
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