भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दो शे’र / अमजद हैदराबादी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार= अमजद हैदराबादी | |रचनाकार= अमजद हैदराबादी | ||
}} | }} | ||
− | + | [[Category: शेर]] | |
<poem> | <poem> | ||
किस तरह नज़र आये वो परदानशीं ‘अमजद’! | किस तरह नज़र आये वो परदानशीं ‘अमजद’! |
21:01, 22 मार्च 2012 के समय का अवतरण
किस तरह नज़र आये वो परदानशीं ‘अमजद’!
हर परदे के बाद और एक परदा नज़र आता है॥
वो करते हैं सब छुपकर, तदबीर इसे कहते हैं।
हम घर लिए जाते हैं, तक़दीर इसे कहते हैं॥
( हम ख़्वाब में वाँ पहुँचे, तदबीर इसे कहते हैं।
वो नींद से चौंक उट्ठे, तक़दीर इसे कहते हैं॥ )