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गुडिय़ा (1) / उर्मिला शुक्ल
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08:31, 25 मार्च 2012
जाने कब और कैसे उसमें बैठ जाती है
गुडिय़ा।
दो-बच्ची को जन्म देकर
तुष्ट नहींहोता
मातृत्व
गर्व से उठता नहीं
मस्तक
अतृप्त मन
चाहने लगता है
कुछ और
गुडिय़ों के ढेर पर
बैठा उसे
करने लगता है उसके
गुडिय़ा बन जाने का
इंतजार
</Poem>
आशिष पुरोहित
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