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भाइयों के चेहरों पर पिता की मृत्यु के मौक़े पर | भाइयों के चेहरों पर पिता की मृत्यु के मौक़े पर | ||
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उनसे परवरिश न हो पाने के तनाव | उनसे परवरिश न हो पाने के तनाव | ||
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वह मृत्युभोज का कार्यक्रम बीच में छोड़ | वह मृत्युभोज का कार्यक्रम बीच में छोड़ | ||
शहर आ गया वापस | शहर आ गया वापस | ||
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उसे दोस्त से उम्मीद थी | उसे दोस्त से उम्मीद थी | ||
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उसे लगा कहीं कोई फ़र्क नहीं पड़ता | उसे लगा कहीं कोई फ़र्क नहीं पड़ता | ||
− | मैं जाऊँ तो नहीं जाऊँ तो | + | मैं जाऊँ तो, नहीं जाऊँ तो |
मुझे देख कर किसी के मन में कुछ नहीं जगता | मुझे देख कर किसी के मन में कुछ नहीं जगता | ||
उसे लगा मैं घर में घर वालों का | उसे लगा मैं घर में घर वालों का |
01:32, 8 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण
उसके जन्म से पहले से ही थे घर में
गाय, भैंस, बैल और बछड़े
दस बीघा पक्के खेत थे हरे-भरे
हरे-भरे खेतों के बीच से जाती
पगडंडियाँ थीं टहलने के लिए
नीमों-बबूलों की टहनियाँ थीं दातुन के लिए
गाने के लिए थे इतने लोकगीत कि उसे
कई ज़िन्दगियों तक के लिए पर्याप्त थे
पहले से ही था अन्न-धान से भरा खलिहान
पहले से ही था चाँद-सितारों से भरा आसमान
वह इस पहले से मिले जीवन को अपने हिस्से में
बचा नहीं सका
इसमें कुछ जोड़ नहीं सका, बढ़ा नहीं सका
बड़ा अधिकारी बना जब वह आगे जीवन में
जिस क़स्बे में उसकी नियुक्ति हुई
उसे अपने कार्य करने की जगह समझने के बजाय
अपने अधीन इलाका मानकर चलना पड़ा
सारी मेहनत, सारी ऊर्जा
सारी लगन, सारी रचना
उम्र-भर की सारी सेवा
पहले एक क़स्बे और अब एक नगर को समर्पित की उसने
नगर ने एक महँगा कोट दिया उसे
लो इसे पहन लो और हम जैसे ही दिखो
ऐसी आभार भरी नींद सोया वह उस रात
कि बरसों उसने अपने गाँव का फलसा तक जाकर नहीं देखा
एक दोपहर गाँव से वृद्ध पिता के निधन की सूचना आई
जूतियाँ और शरीर से गंधाते संदेशवाहक से कहा उसने
कहना जल्दी ही मैं आ रहा हूँ
पहुँचा, तब मातम का वातावरण था वहाँ
आँगन में बिछी जाजम पर पँच-पटैल बैठे थे
भाइयों के चेहरों पर पिता की मृत्यु के मौक़े पर
भोज के लिए कर्ज़ लेने का भाव
और बच्चों तथा पत्नियों की
उनसे परवरिश न हो पाने के तनाव
घर के चूल्हे और परिंडे पर निगाह डालने पर उसे लगा
घर जैसे उसके पीछे से नंगा ही नंगा हुआ है हर साल
उसने पाया कि भाइयों ने उससे कुछ नहीं कहा पूरे समय
कुछ नहीं कह कर सहते रहे जैसे वे
उसे लगा वे ख़ुद से भी कुछ नहीं कहते शायद
वह मृत्युभोज का कार्यक्रम बीच में छोड़
शहर आ गया वापस
वह दोस्त के पास गया
उसे दोस्त से उम्मीद थी
दोस्त देख नहीं पाया कि वह आया है
उसे लगा कहीं कोई फ़र्क नहीं पड़ता
मैं जाऊँ तो, नहीं जाऊँ तो
मुझे देख कर किसी के मन में कुछ नहीं जगता
उसे लगा मैं घर में घर वालों का
बाहर बाहर वालों का छोड़ा हुआ हूँ
अच्छा और बुरा लगने का छोड़ा हुआ हूँ
सार्थकताओं और निर्रथकताओं का छोड़ा हुआ हूँ
उसे लगा जीवन नहीं हूँ मैं एक
मृत्यु का छोड़ा हुआ हूँ महज