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नंद-सुवन की लगौं बलैया, यह जूठनि कछु सूरज पावै ॥<br><br>
भावार्थ :-- (माता कहती हैं) -`मेरे बालगोपाल को मक्खन रुचिकर है ।मन । मन मोहन एक क्षण भी भूखे नहीं रह सकता; इसमें जो देर लगा सके, उससे मैं होड़ बद सकती हूँ । मथानी लाकर मैं तबतक तब तक दही मथ लूँ जब तक कि मेरा लाल जाग न जाय; (क्योंकि) उठते ही वह (मक्खनके मक्खन के लिये) मचल जाता है और फिरइन्द्र फिर इन्द्र भी आकर मनावें तो मान नहीं सकता । मैं श्यामका श्याम का यह स्वभाव जानती हूँ कि वह (आधी नींदमें नींद में भी उठकर मक्खन लेकर) नेत्र बंद किये हुए मुँह चलातारहता चलाता रहता है ।' सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि मैं श्रीनन्दनन्दनके श्रीनन्दनन्दन के ऊपर बलिहारी जाता हूँ,उनका यह उच्छिष्ट कुछ मुझे भी मिल जाय ।