"मदर इंडिया / गीत चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
{{KKAnthologyDeshBkthi}} | {{KKAnthologyDeshBkthi}} | ||
− | '''उन दो औरतों के लिए जिन्होंने कुछ दिनों तक शहर को डुबो दिया था | + | <poem> |
− | + | '''उन दो औरतों के लिए जिन्होंने कुछ दिनों तक शहर को डुबो दिया था''' | |
दरवाज़ा खोलते ही झुलस जाएँ आप शर्म की गर्मास से | दरवाज़ा खोलते ही झुलस जाएँ आप शर्म की गर्मास से | ||
− | |||
खड़े-खड़े ही गड़ जाएँ महीतल, उससे भी नीचे रसातल तक | खड़े-खड़े ही गड़ जाएँ महीतल, उससे भी नीचे रसातल तक | ||
− | |||
फोड़ लें अपनी आँखें निकाल फेंके उस नालायक़ दृष्टि को | फोड़ लें अपनी आँखें निकाल फेंके उस नालायक़ दृष्टि को | ||
− | |||
जो बेहयाई के नक्की अंधकार में उलझ-उलझ जाती है | जो बेहयाई के नक्की अंधकार में उलझ-उलझ जाती है | ||
− | |||
या चुपचाप भीतर से ले आई जाए | या चुपचाप भीतर से ले आई जाए | ||
− | |||
कबाट के किसी कोने में फँसी इसी दिन का इंतज़ार करती | कबाट के किसी कोने में फँसी इसी दिन का इंतज़ार करती | ||
− | |||
कोई पुरानी साबुत साड़ी जिसे भाभी बहन माँ या पत्नी ने | कोई पुरानी साबुत साड़ी जिसे भाभी बहन माँ या पत्नी ने | ||
− | |||
पहनने से नकार दिया हो | पहनने से नकार दिया हो | ||
− | |||
और उन्हें दी जाए जो खड़ी हैं दरवाज़े पर | और उन्हें दी जाए जो खड़ी हैं दरवाज़े पर | ||
− | |||
माँस का वीभत्स लोथड़ा सालिम बिना किसी वस्त्र के | माँस का वीभत्स लोथड़ा सालिम बिना किसी वस्त्र के | ||
− | |||
अपनी निर्लज्जता में सकुचाईं | अपनी निर्लज्जता में सकुचाईं | ||
− | |||
जिन्हें भाभी माँ बहन या पत्नी मानने से नकार दिया गया हो | जिन्हें भाभी माँ बहन या पत्नी मानने से नकार दिया गया हो | ||
− | |||
कौन हैं ये दो औरतें जो बग़ल में कोई पोटली दबा बहुधा निर्वस्त्र | कौन हैं ये दो औरतें जो बग़ल में कोई पोटली दबा बहुधा निर्वस्त्र | ||
− | |||
भटकती हैं शहर की सड़क पर बाहोश | भटकती हैं शहर की सड़क पर बाहोश | ||
− | |||
मुरदार मन से खींचती हैं हमारे समय का चीर | मुरदार मन से खींचती हैं हमारे समय का चीर | ||
− | |||
और पूरी जमात को शर्म की आँजुर में डुबो देती हैं | और पूरी जमात को शर्म की आँजुर में डुबो देती हैं | ||
− | |||
ये चलती हैं सड़क पर तो वे लड़के क्यों नहीं बजाते सीटी | ये चलती हैं सड़क पर तो वे लड़के क्यों नहीं बजाते सीटी | ||
− | |||
जिनके लिए अभिनेत्रियों को यौवन गदराया है | जिनके लिए अभिनेत्रियों को यौवन गदराया है | ||
− | |||
महिलाएँ क्यों ज़मीन फोड़ने लगती हैं | महिलाएँ क्यों ज़मीन फोड़ने लगती हैं | ||
− | |||
लगातार गालियां देते दुकानदार काउंटर के नीचे झुक कुछ ढूंढ़ने लगते हैं | लगातार गालियां देते दुकानदार काउंटर के नीचे झुक कुछ ढूंढ़ने लगते हैं | ||
− | |||
और वह कौन होता है जो कलेजा ग़र्क़ कर देने वाले इस दलदल पर चल | और वह कौन होता है जो कलेजा ग़र्क़ कर देने वाले इस दलदल पर चल | ||
− | |||
फिर उन्हें ओढ़ा आता है कोई चादर परदा या दुपट्टे का टुकड़ा | फिर उन्हें ओढ़ा आता है कोई चादर परदा या दुपट्टे का टुकड़ा | ||
− | |||
ये पूरी तरह खुली हैं खुलेपन का स्वागत करते वक़्त में | ये पूरी तरह खुली हैं खुलेपन का स्वागत करते वक़्त में | ||
− | |||
ये उम्र में इतनी कम भी नहीं, इतनी ज़्यादा भी नहीं | ये उम्र में इतनी कम भी नहीं, इतनी ज़्यादा भी नहीं | ||
− | |||
ये कौन-सी महिलाएँ हैं जिनके लिए गहना नहीं हया | ये कौन-सी महिलाएँ हैं जिनके लिए गहना नहीं हया | ||
− | |||
ये हम कैसे दोगले हैं जो नहीं जुटा पाए इनके लिए तीन गज़ कपड़ा | ये हम कैसे दोगले हैं जो नहीं जुटा पाए इनके लिए तीन गज़ कपड़ा | ||
− | |||
ये पहनने को मांगती हैं पहना दो तो उतार फेंकती हैं | ये पहनने को मांगती हैं पहना दो तो उतार फेंकती हैं | ||
− | |||
कैसा मूडी कि़स्म का है इनका मेटाफिजिक्स | कैसा मूडी कि़स्म का है इनका मेटाफिजिक्स | ||
− | |||
इन्हें कोई वास्ता नहीं कपड़ों से | इन्हें कोई वास्ता नहीं कपड़ों से | ||
− | |||
फिर क्यों अचानक किसी के दरवाज़े को कर देती हैं पानी-पानी | फिर क्यों अचानक किसी के दरवाज़े को कर देती हैं पानी-पानी | ||
− | |||
ये कहाँ खोल आती हैं अपनी अंगिया-चनिया | ये कहाँ खोल आती हैं अपनी अंगिया-चनिया | ||
− | |||
इन्हें कम पड़ता है जो मिलता है | इन्हें कम पड़ता है जो मिलता है | ||
− | |||
जो मिलता है कम क्यों होता है | जो मिलता है कम क्यों होता है | ||
− | |||
लाज का व्यवसाय है मन मैल का मंदिर | लाज का व्यवसाय है मन मैल का मंदिर | ||
− | |||
इन्हें सड़क पर चलने से रोक दिया जाए | इन्हें सड़क पर चलने से रोक दिया जाए | ||
− | |||
नेहरू चौक पर खड़ा कर दाग़ दिया जाए | नेहरू चौक पर खड़ा कर दाग़ दिया जाए | ||
− | |||
पुलिस में दे दें या चकले में पर शहर की सड़क को साफ़ किया जाए | पुलिस में दे दें या चकले में पर शहर की सड़क को साफ़ किया जाए | ||
− | |||
ये स्त्रियाँ हैं हमारे अंदर की जिनके लिए जगह नहीं बची अंदर | ये स्त्रियाँ हैं हमारे अंदर की जिनके लिए जगह नहीं बची अंदर | ||
− | |||
ये इम्तिहान हैं हममें बची हुई शर्म का | ये इम्तिहान हैं हममें बची हुई शर्म का | ||
− | |||
ये मदर इंडिया हैं सही नाप लेने वाले दर्जी़ की तलाश में | ये मदर इंडिया हैं सही नाप लेने वाले दर्जी़ की तलाश में | ||
− | |||
कौन हैं ये | कौन हैं ये | ||
− | |||
पता किया जाए. | पता किया जाए. | ||
+ | </poem> |
16:23, 16 अप्रैल 2012 का अवतरण
उन दो औरतों के लिए जिन्होंने कुछ दिनों तक शहर को डुबो दिया था
दरवाज़ा खोलते ही झुलस जाएँ आप शर्म की गर्मास से
खड़े-खड़े ही गड़ जाएँ महीतल, उससे भी नीचे रसातल तक
फोड़ लें अपनी आँखें निकाल फेंके उस नालायक़ दृष्टि को
जो बेहयाई के नक्की अंधकार में उलझ-उलझ जाती है
या चुपचाप भीतर से ले आई जाए
कबाट के किसी कोने में फँसी इसी दिन का इंतज़ार करती
कोई पुरानी साबुत साड़ी जिसे भाभी बहन माँ या पत्नी ने
पहनने से नकार दिया हो
और उन्हें दी जाए जो खड़ी हैं दरवाज़े पर
माँस का वीभत्स लोथड़ा सालिम बिना किसी वस्त्र के
अपनी निर्लज्जता में सकुचाईं
जिन्हें भाभी माँ बहन या पत्नी मानने से नकार दिया गया हो
कौन हैं ये दो औरतें जो बग़ल में कोई पोटली दबा बहुधा निर्वस्त्र
भटकती हैं शहर की सड़क पर बाहोश
मुरदार मन से खींचती हैं हमारे समय का चीर
और पूरी जमात को शर्म की आँजुर में डुबो देती हैं
ये चलती हैं सड़क पर तो वे लड़के क्यों नहीं बजाते सीटी
जिनके लिए अभिनेत्रियों को यौवन गदराया है
महिलाएँ क्यों ज़मीन फोड़ने लगती हैं
लगातार गालियां देते दुकानदार काउंटर के नीचे झुक कुछ ढूंढ़ने लगते हैं
और वह कौन होता है जो कलेजा ग़र्क़ कर देने वाले इस दलदल पर चल
फिर उन्हें ओढ़ा आता है कोई चादर परदा या दुपट्टे का टुकड़ा
ये पूरी तरह खुली हैं खुलेपन का स्वागत करते वक़्त में
ये उम्र में इतनी कम भी नहीं, इतनी ज़्यादा भी नहीं
ये कौन-सी महिलाएँ हैं जिनके लिए गहना नहीं हया
ये हम कैसे दोगले हैं जो नहीं जुटा पाए इनके लिए तीन गज़ कपड़ा
ये पहनने को मांगती हैं पहना दो तो उतार फेंकती हैं
कैसा मूडी कि़स्म का है इनका मेटाफिजिक्स
इन्हें कोई वास्ता नहीं कपड़ों से
फिर क्यों अचानक किसी के दरवाज़े को कर देती हैं पानी-पानी
ये कहाँ खोल आती हैं अपनी अंगिया-चनिया
इन्हें कम पड़ता है जो मिलता है
जो मिलता है कम क्यों होता है
लाज का व्यवसाय है मन मैल का मंदिर
इन्हें सड़क पर चलने से रोक दिया जाए
नेहरू चौक पर खड़ा कर दाग़ दिया जाए
पुलिस में दे दें या चकले में पर शहर की सड़क को साफ़ किया जाए
ये स्त्रियाँ हैं हमारे अंदर की जिनके लिए जगह नहीं बची अंदर
ये इम्तिहान हैं हममें बची हुई शर्म का
ये मदर इंडिया हैं सही नाप लेने वाले दर्जी़ की तलाश में
कौन हैं ये
पता किया जाए.