|संग्रह=क्रूरता / कुमार अंबुज
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{{KKCatKavita}}<poem>धीरे धीरे क्षमाभाव समाप्त हो जाएगाप्रेम की आकांक्षा तो होगी मगर जरूरत न रह जाएगीझर जाएगी पाने की बेचैनी और खो देने की पीड़ाक्रोध अकेला न होगा वह संगठित हो जाएगाएक अनंत प्रतियोगिता होगी जिसमें लोगपराजित न होने के लिए नहींअपनी श्रेष्ठता के लिए युद्धरत होंगेतब आएगी क्रूरता<br>पहले ह्रदय हृदय में आएगी और चेहरे पर न दिखेगी<br>दीखेगीफिर घटित होगी धर्मग्रंथो धर्मग्रंथों की ब्याख्या व्याख्या में<br>फिर इतिहास में और<br>फिर भविष्यवाणियों में<br>फिर वह जनता का आदर्श हो जाएगी<br>....निरर्थक हो जाएगा विलापदूसरी मृत्यु थाम लेगी पहली मृत्यु से उपजे आँसूपड़ोसी सांत्वना नहीं एक हथियार देगातब आएगी क्रूरता और आहत नहीं करेगी हमारी आत्मा कोफिर वह चेहरे पर भी दिखेगीलेकिन अलग से पहचानी न जाएगीसब तरफ होंगे एक जैसे चेहरेसब अपनी-अपनी तरह से कर रहे होंगे क्रूरताऔर सभी में गौरव भाव होगावह संस्कृति की तरह आएगी,<br>उसका कोई विरोधी नहीं न होगा<br>कोशिश सिर्फ यह होगी <br>कि किस तरह वह अधिक सभ्य<br>और अधिक ऐतिहासिक हो<br>...वह भावी इतिहास की लज्जा की तरह आएगीऔर सोख लेगी हमारी सारी करुणाहमारा सारा ऋंगारयही ज्यादा संभव है कि वह आए <br>और लंबे समय तक हमें पता ही न चले उसका आनाआना। </poem>