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फ़िराक़ गोरखपुरी / परिचय

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उपनाम [[फ़िराक़ गोरखपुरी|फ़िराक़]] '''फिराक गोरखपुरी''' (मूल नाम रघुपति सहाय) (२८ अगस्त १८९६ - ३ मार्च १९८२) उर्दू भाषा के प्रसिद्ध रचनाकार है। उनका जन्म गोरखपुर, [[उत्तर प्रदेश]] में कायस्थ परिवार में हुआ। इनका मूल नाम रघुपति सहाय था। रामकृष्ण की कहानियों से शुरुआत के बाद की शिक्षा अरबी, फारसी और अंग्रेजी में हुई।
==विवाह ==
२९ जून, १९१४ को उनका विवाह प्रसिद्ध जमींदार विन्देश्वरी प्रसाद की बेटी किशोरी देवी से हुआ। कला स्नातक में पूरे प्रदेश में चौथा स्थान पाने के बाद आई.सी.एस. में चुने गये। १९२० में नौकरी छोड़ दी तथा स्वराज्य आंदोलन में कूद पड़े तथा डेढ़ वर्ष की जेल की सजा भी काटी। ।
==पुरस्कार==
उन्हें गुले-नग्मा के लिए [[साहित्य अकादमी पुरस्कार]]
[[ज्ञानपीठ पुरस्कार ]] और [[सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया।
उन्हें गुले-नग़मा के लिये 1969 में [[ज्ञानपीठ पुरस्कार ]] से सम्मानित किया गया था।
फिराक गोरखपुरी को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६८ में भारत सरकार ने [[पद्म भूषणसे अलंकृत]] से सम्मानित किया था।
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