"मैया री मोहि दाऊ टेरत / सूरदास" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} मैया री मोहि दाऊ टेरत । मोकौं बन-फल तोरि देत ह...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
}} | }} | ||
− | मैया री मोहि दाऊ टेरत । | + | मैया री मोहि दाऊ टेरत ।<br> |
− | मोकौं बन-फल तोरि देत हैं, आपुन गैयनि घेरत ॥ | + | मोकौं बन-फल तोरि देत हैं, आपुन गैयनि घेरत ॥<br> |
− | और ग्वाल सँग कबहुँ न जैहौं, वै सब मोहि खिझावत । | + | और ग्वाल सँग कबहुँ न जैहौं, वै सब मोहि खिझावत ।<br> |
− | मैं अपने दाऊ सँग जैहौं, बन देखैं सुख पावत । | + | मैं अपने दाऊ सँग जैहौं, बन देखैं सुख पावत ।<br> |
− | आगें दै पुनि ल्यावत घर कौं, तू मोहि जान न देति । | + | आगें दै पुनि ल्यावत घर कौं, तू मोहि जान न देति ।<br> |
− | सूर स्याम जसुमति मैया सौं हा-हा करि कहै केति ॥ | + | सूर स्याम जसुमति मैया सौं हा-हा करि कहै केति ॥<br><br> |
भावार्थ :-- (श्यामसुन्दर कहते हैं-) ` अरी मैया! मुझे दाऊ दादा पुकार रहे । | भावार्थ :-- (श्यामसुन्दर कहते हैं-) ` अरी मैया! मुझे दाऊ दादा पुकार रहे । | ||
मुझे वे वन के फल तोड़-तोड़ कर दिया करते हैं और स्वयं गायें हाँकते-घेरते हैं । मैं दूसरे गोपकुमारों के साथ कभी नहीं जाऊँगा, वे सब मुझे चिढ़ाते हैं । मैं अपने दाऊ दादा के साथ जाऊँगा, वन देखने से मुझे आनन्द मिलता है । फिर वे मुझे आगे करके ले आते हैं । परंतु तू जो मुझे जाने नहीं देती ।' सूरदास जी कहते हैं कि श्यामसुन्दर मैया यशोदा से कितनी ही अनुनय करके कह रहे हैं । | मुझे वे वन के फल तोड़-तोड़ कर दिया करते हैं और स्वयं गायें हाँकते-घेरते हैं । मैं दूसरे गोपकुमारों के साथ कभी नहीं जाऊँगा, वे सब मुझे चिढ़ाते हैं । मैं अपने दाऊ दादा के साथ जाऊँगा, वन देखने से मुझे आनन्द मिलता है । फिर वे मुझे आगे करके ले आते हैं । परंतु तू जो मुझे जाने नहीं देती ।' सूरदास जी कहते हैं कि श्यामसुन्दर मैया यशोदा से कितनी ही अनुनय करके कह रहे हैं । |
19:53, 1 अक्टूबर 2007 के समय का अवतरण
मैया री मोहि दाऊ टेरत ।
मोकौं बन-फल तोरि देत हैं, आपुन गैयनि घेरत ॥
और ग्वाल सँग कबहुँ न जैहौं, वै सब मोहि खिझावत ।
मैं अपने दाऊ सँग जैहौं, बन देखैं सुख पावत ।
आगें दै पुनि ल्यावत घर कौं, तू मोहि जान न देति ।
सूर स्याम जसुमति मैया सौं हा-हा करि कहै केति ॥
भावार्थ :-- (श्यामसुन्दर कहते हैं-) ` अरी मैया! मुझे दाऊ दादा पुकार रहे ।
मुझे वे वन के फल तोड़-तोड़ कर दिया करते हैं और स्वयं गायें हाँकते-घेरते हैं । मैं दूसरे गोपकुमारों के साथ कभी नहीं जाऊँगा, वे सब मुझे चिढ़ाते हैं । मैं अपने दाऊ दादा के साथ जाऊँगा, वन देखने से मुझे आनन्द मिलता है । फिर वे मुझे आगे करके ले आते हैं । परंतु तू जो मुझे जाने नहीं देती ।' सूरदास जी कहते हैं कि श्यामसुन्दर मैया यशोदा से कितनी ही अनुनय करके कह रहे हैं ।