"शिवाष्टक / शिवदीन राम जोशी" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी | | }} {{KKCatRajasthan}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
| | | | ||
}} | }} | ||
− | |||
<poem> | <poem> | ||
शिवाष्टक | शिवाष्टक |
11:26, 30 मई 2012 का अवतरण
शिवाष्टक
पारबती सी सती शिव के, सुत सत्य गणेश धुरन्धर ज्ञानी|
कैलाश सा धाम आनंद सदा, शिव सीस जटान में गंग समानी ||
सब देवन में महादेव बड़े, सुर पूजत हैं जग के सब प्राणी |
मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिवशंकर दानी ||१||
शिव सुख करो अघ दुःख हरो, प्रभु आस भरो बरदायक ज्ञानी |
चारों ही ओर प्रकाश सदा शिव, शंभू दयामय साधू अमानी ||
तव द्वार से प्रेम अपार मिले, सब सार मिले यह सत्य कहानी |
मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिवशंकर दानी ||२||
तीनों ही ताप त्रिशूल हरे, शिव बाजत है डमरू अगवानी |
भूत पिशाच दोउ कर जोरत, नृत्य करे गुनज्ञान बखानी ||
शमशान में ध्यान विभूति चढ़े, शिव तात कथा नहीं कहू से छानी |
मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिवशंकर दानी ||३||
मृग छाल बागम्बर साजत है, शिव भाल पे चंद अमी बरसानी |
अनंत अखंड समाधि लगावत, भक्तन के हित बात ये ठानी ||
लहर तरंग में भंग के रंग में, आठों ही याम रहें शिव ध्यानी |
मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिवशंकर दानी ||४||
रावन शीश उतार धरे, शिव होय प्रसन्न दिये वर ज्ञानी |
शिव शंभू कृपा से दसानन को, वह स्वर्ण की लंका मिली रजधानी ||
सुन्दरी वाम मिले सुत सुभट, भाई विभीषण अमृत वाणी |
मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिव शंकर दानी ||५||
भक्तन के सरताज त्रिलोचन, योगी सदा शिव टेक निभानी |
संतन के हित में चित में, बल बुद्धि जगावत सुरत सायानी ||
दाता प्रताप महा महिमा, जग जानत है यह बात न छानी |
मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिव शंकर दानी ||६||
भोले कल्याण करो सबका, धन धान सुता सुत दे सुर ज्ञानी |
शिव शरण परे की रखे लजिया, भंडार भरे गुण वेद बखानी ||
सारद शेष दिनेश मुनीन्द्र, सभी गुण गावत ये गुण ज्ञानी |
मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिव शंकर दानी ||७||
राम ही राम रटे शिव शंकर, ध्यान धरे निशि वासर ध्यानी |
लीला अनंत न अंत मिले, शिव संग रहे जगदंब भवानी ||
कर जोरत है शिवदीन निरंतर, शीश झुकावत सज्जन प्राणी |
मन कामना पूरण शीघ्र करो, मेरी अर्ज़ सुनो शिव शंकर दानी ||८||
दोहा
शिव अष्टक पढि प्रेम से, पाठ करे जो कोय |
शिवदीन प्रेम भक्ति मिले, हरी का दर्शन होय ||