भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"क़तअ़ात / ‘अना’ क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='अना' क़ासमी |संग्रह=हवाओं के साज़ प...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
ये हक़ीकत है ऐ दिले-नादाँ | ये हक़ीकत है ऐ दिले-नादाँ | ||
तुझको ये मानना भी मुश्किल है | तुझको ये मानना भी मुश्किल है | ||
− | चेहरे | + | चेहरे इतने बदल चुका अब तक |
ख़ुद को पहचानना भी मुश्किल है | ख़ुद को पहचानना भी मुश्किल है | ||
19:02, 1 जून 2012 के समय का अवतरण
ये हक़ीकत है ऐ दिले-नादाँ
तुझको ये मानना भी मुश्किल है
चेहरे इतने बदल चुका अब तक
ख़ुद को पहचानना भी मुश्किल है
फिर नया ज़ख़्म नयी एक ग़ज़ल की सूरत
जैसे मुमताज का ग़म ताजमहल की सूरत
आज भी कितने मसीहा लिये फिरते हैं सलीब
देख मज़दूर के कांधे पे ये हल की सूरत