[[भगवत रावत]] का हमारे बीच से इस तरह चले जाना अप्रत्याशित नहीं था। पर, यह अजीब है कि इस बात पर विश्वास नहीं होता। 26 मई २०१२. सुबह भोपाल में उनका देहावसान हो गया। सुदर्शन व्यक्तित्व और यथार्थ के खुरदुरे धरातल के कवि भगवत रावत अपनी मुलाकातों में प्रेम और रिश्तों की गर्माहट से इस कदर भरे पूरे थे कि इस बात की कल्पना सहज ही नहीं की जा सकती थी, इनकी एक किडनी ने काम करना बंद कर दिया है और दूसरी भी पूरी तरह से ठीक नहीं है।
उनकी जिजीविषा अद्भुत थी. कोई कष्ट और बीमारी उनके जीने के हौसले को कम नहीं कर सकी. साहित्य उनके लिए लोगों को जानने और जीवन के नज़दीक होने काजरिया रहा. उनके इतने काव्य संग्रह आये और मध्यप्रदेश शासन द्वारा साहित्य का [[शिखर-सम्मान]] और अनेक [[प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार ]] मिले लेकिन वे सदा बिना किसी अहंकार के रहे. उनकी समझ मार्क्सवादी थी इसलिए उनकीकविताओं की भाषा भी सदा जन से जुडी भाषा रही. देवी अहिल्या केंद्रीय पुस्तकालय में अपने पूर्व अध्यक्ष तथा हिन्दी के सुविख्यात कवि[[भगवत रावत ]] को भावभीने ढंग से याद किया. उनकी याद में अनेक स्थानीय साहित्यकारों ने उनकी लिखीं कविताओं का पाठ किया और अपने संस्मरणों केजरिये श्रद्धांजलि अर्पित की. उत्पल बनर्जी ने भगवत रावतजी को याद करते हुए कहा कि एक बार वे विदिशा के नज़दीक के शमशाबाद कस्बे में हम युवाकवियों को कविता शिविर के हिस्से के टूर पर आदिवासियों की हाट में ले गए और बहुत देर तक आदिवासियों के साथ उनके जीवन और सुख-दुःख की बात करतेरहे. सदाशिव कौतुक ने उन्हें याद करते हुए बताया कि ये उनका बड़प्पन था कि उन्हें बीस बरस पहले जो किताब भेंट की थी उसका शीर्षक उन्हें बरसों बादमिलने पर भी याद रहा. नरहरी पटेलजी ने उनके साथ भोपाल में हुई आत्मीय भेंट का ज़िक्र किया. अभय नेमा ने बताया कि वे उन्हें तब ट्रेन में मिलेथे जब वे न साहित्य से खास परिचित थे और न कविता से लेकिन भगवत रावत जैसे व्यक्तित्व से मिलकर उनकी रूचि साहित्य और समाज के भीतर गहरी हुई. जनवादी लेखक संघ के अध्यक्ष व वरिष्ठ साहित्यकार [[सनत कुमार ]] ने भगवत रावतजी के साथ अपनी मित्रता के प्रसंग सुनाते हुए कहा कि भगवतजी जैसा मित्र पाकरउन्हें गर्व अनुभव होता था. उन्होंने भगवत रावतजी के संपादकत्व में निकली ‘वसुधा’ तथा ‘साक्षात्कार’ पत्रिकाओं के यादगार अंकों को याद किया. प्रलेस के प्रांतीय महासचिव [[विनीत तिवारी ]] ने उन्हें कविता और जीवन, दोनों का अच्छा शिक्षक बताते हुए याद किया कि भगवत रावतजी पचास बरसों सेकम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य थे और कम्युनिस्ट विचारधारा छिपाने का उन्होंने कभी प्रयत्न नहीं किया. उनकी कविता जितना अपने दुश्मनों को बेनकाब करती थी उतना ही वे भीतर छिपी निम्न प्रवृत्तियों पर भी प्रहार करते थे. राजकुमार कुम्भज, अजीज़ कुरेशी, जया मेहता, अनंत श्रोत्रिय, सारिका श्रीवास्तव, जावेद आलम, चैतन्य त्रिवेदी आदि ने भगवतजी के साथ जुडी अपनी यादें सुनाईं.सुलभा लागू, उत्पल बनर्जी, अभय नेमा और विनीत तिवारी ने भगवत जी कि चुनिन्दा रचनाओं का पाठ किया. अनंत श्रोत्रिय जी की अध्यक्षता में जवाहरचौधरी, चुन्नीलाल वाधवानी, एस के दुबे, विश्वनाथ कदम तौफीक गौरी, आदि सभी ने अपने प्रिय कवि और एक बहुत प्यारे इंसान [[भगवत रावत]]जी को श्रद्धांजलि दी.
उनकी एक कविता है-
'अपना गाना' जिसकी आरंभिक पंक्तियां हैं-
''जब मैं लौटूंगा इस सड़क से,
देर रात गए,
उनकी कविता 'प्यारेलाल के लिए बिदा गीत' की अंतिम पंक्तियां याद आ रही हैं-
''चलो देर मत करो,
देखो तुम्हारे रथ के घोडे बाहर हिनहिना रहे हैं,