{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसीदास
}}|संग्रह=विनयावली / तुलसीदास {{KKCatKavita}}* [[Category:लम्बी रचनाविनयावली / तुलसीदास / पद 131 से 140 तक / पृष्ठ 1]]{{KKPageNavigation* [[विनयावली / तुलसीदास / पद 131 से 140 तक / पृष्ठ 2]]|पीछे=* [[विनयावली() / तुलसीदास / पद 131 से 140 तक / पृष्ठ 133]]|आगे=* [[विनयावली() / तुलसीदास / पद 131 से 140 तक / पृष्ठ 154]]|सारणी=* [[विनयावली() / तुलसीदास / पद 131 से 140 तक / पृष्ठ 5]]}}* [[विनयावली / तुलसीदास / पद 131 से 140 तक / पृष्ठ 6]]<poem>* [[विनयावली / तुलसीदास / पद 131 से 140 तक / पृष्ठ 7]]'''* [[विनयावली / तुलसीदास / पद 131 से 140 तक'''/ पृष्ठ 8]]* [[विनयावली / तुलसीदास / पद 131 से 140 तक / पृष्ठ 9]](* [[विनयावली / तुलसीदास / पद 131)से 140 तक / पृष्ठ 10]]* [[विनयावली / तुलसीदास / पद 131 से 140 तक / पृष्ठ 11]]पावन प्रेम राम-चरन-कमल जनम लाहु परम। रामनाम लेत होत, सुलभ सकल धरम। जोग, मख, बिबेक, बिरत , बेद-बिदित करम। करिबै कहँ कटु कठोर, सुनत मधुर, नरम। तुलसी सुनि, जानि-बूझि, भूलहि जानि भरम। तेहि प्रभुको होहि, जाहि सब ही की सरम।।<* [[विनयावली /poem>तुलसीदास / पद 131 से 140 तक / पृष्ठ 12]]