{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसीदास
}}|संग्रह=विनयावली / तुलसीदास {{KKCatKavita}}* [[Category:लम्बी रचनाविनयावली / तुलसीदास / पद 171 से 180 तक / पृष्ठ 1]]{{KKPageNavigation|पीछे=* [[विनयावली() / तुलसीदास / पद 171 से 180 तक / पृष्ठ 172]]|आगे=* [[विनयावली() / तुलसीदास / पद 171 से 180 तक / पृष्ठ 193]]|सारणी=* [[विनयावली() / तुलसीदास }}<poem>'''/ पद 171 से 180 तक''' (175) जो पै रहनि रामसों नाहीं। तौ नर खग कूकर सम बृथा जियत जग माहीं।। / पृष्ठ 4]]काम, क्रोध, मद, लोभ, नींद, भय, भूक, प्यास सबहीके। मनुज देह सुर-साधु सराहत, सो सनेह सिय-पीके।। सुर, सुजान, सुपूत, सुलच्छन गनियत गुन गरूआई। बिनु हरिभजन इँदारूनके फल तजत नहीं करूआई । कीरति कुल करतूति, भूति भलि, सील सरूप सलोने । तुलसी प्रभु अनुराग-रहित जस सालन साग अलोने।<* [[विनयावली /poem>तुलसीदास / पद 171 से 180 तक / पृष्ठ 5]]