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उर्वी का छौना / सुधा गुप्ता

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<poem>
 
चाँद सलोना
रुपहला खिलौना
माखन लोना
माँ का बड़ा लाडला
सब का प्यारा
गोरा-गोरा मुखड़ा
बड़ा सजीला
किसी की न माने वो
पूरा हठीला
‘बुरी नज़र दूर’
करने हेतु
ममता से लगाया
काला ‘दिठौना’
 
माँ सँग खेल रहा
खेल पुराना
पेड़ों छिप जाता
निकल आता
किलकता, हँसता
माँ से करे ‘झा’
 
रूप देख परियाँ
हुईं दीवानी
आगे-पीछे डोलतीं
करे शैतानी
चाँदनी का दरिया
बहा के लाता
सबको डुबा जाता
 
गोल-मटोल
उजला, गदबदा
रूप सलोना
नभ का शहज़ादा
वह उर्वी का छौना
-0-
</poem>
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