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"एक मामूली औरत / वर्तिका नन्दा" के अवतरणों में अंतर

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आंखों के छोर से
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पता भी नहीं चलता
 
पता भी नहीं चलता
कब आंसू टपक आता है और तुम कहते हो
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कब आँसू टपक आता है और तुम कहते हो
मैं सपने देखूं।
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मैं सपने देखूँ ।
  
 
तुम देख आए तारे ज़मी पे
 
तुम देख आए तारे ज़मी पे
 
तो तुम्हें लगा कि सपने
 
तो तुम्हें लगा कि सपने
यूं ही संगीत की थिरकनों के साथ उग आते हैं।
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नहीं, ऐसे नहीं उगते सपने।
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मैं औरत हूं
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अकेली हूं
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अकेली हूँ
पत्रकार हूं।
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पत्रकार हूँ ।
  
मैं दुनिया भर के सामने फौलादी हो सकती हूं
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मैं दुनिया भर के सामने फौलादी हो सकती हूँ
 
पर अपने कमरे के शीशे के सामने
 
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मेरा जो सच है,
 
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वह सिर्फ मुझे ही दिखता है
 
वह सिर्फ मुझे ही दिखता है
और उसी सच में, सच कहूं,
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और उसी सच में, सच कहूँ,
सपने कहीं नहीं होते।
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सपने कहीं नहीं होते ।
  
तुमसे बरसों मैनें यही मांगा था
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तुमसे बरसों मैनें यही माँगा था
मुझे औरत बनाना, आंसू नहीं
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मुझे औरत बनाना, आँसू नहीं
तब मैं कहां जानती थी
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तब मैं कहाँ जानती थी
दोनों एक ही हैं।
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दोनों एक ही हैं ।
  
 
बस, अब मुझे मत कहो
 
बस, अब मुझे मत कहो
कि मैं देखूं सपने
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कि मैं देखूँ सपने
मैं अकेली ही ठीक हूं
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मैं अकेली ही ठीक हूँ
अधूरी, हवा सी भटकती।
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अधूरी, हवा-सी भटकती ।
  
 
पर तुम यह सब नहीं समझोगे
 
पर तुम यह सब नहीं समझोगे
 
समझ भी नहीं सकते
 
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क्योंकि तुम औरत नहीं हो
 
क्योंकि तुम औरत नहीं हो
तुमने औरत के गर्म आंसू की छलक
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अपनी हथेली पर रखी ही कहां?
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अपनी हथेली पर रखी ही कहाँ ?
  
 
अब रहने दो
 
अब रहने दो
 
रहने दो कुछ भी कहना
 
रहने दो कुछ भी कहना
बस मुझे खुद में छलकने दो
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बस मुझे ख़ुद में छलकने दो
और अधूरा ही रहने दो।
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और अधूरा ही रहने दो ।
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23:06, 16 जुलाई 2012 के समय का अवतरण

आँखों के छोर से
पता भी नहीं चलता
कब आँसू टपक आता है और तुम कहते हो
मैं सपने देखूँ ।

तुम देख आए तारे ज़मी पे
तो तुम्हें लगा कि सपने
यूँ ही संगीत की थिरकनों के साथ उग आते हैं ।

नहीं, ऐसे नहीं उगते सपने ।

मैं औरत हूँ
अकेली हूँ
पत्रकार हूँ ।

मैं दुनिया भर के सामने फौलादी हो सकती हूँ
पर अपने कमरे के शीशे के सामने
मेरा जो सच है,
वह सिर्फ मुझे ही दिखता है
और उसी सच में, सच कहूँ,
सपने कहीं नहीं होते ।

तुमसे बरसों मैनें यही माँगा था
मुझे औरत बनाना, आँसू नहीं
तब मैं कहाँ जानती थी
दोनों एक ही हैं ।

बस, अब मुझे मत कहो
कि मैं देखूँ सपने
मैं अकेली ही ठीक हूँ
अधूरी, हवा-सी भटकती ।

पर तुम यह सब नहीं समझोगे
समझ भी नहीं सकते
क्योंकि तुम औरत नहीं हो
तुमने औरत के गर्म आँसू की छलक
अपनी हथेली पर रखी ही कहाँ ?

अब रहने दो
रहने दो कुछ भी कहना
बस मुझे ख़ुद में छलकने दो
और अधूरा ही रहने दो ।