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मैंने आहुति बन कर देखा / अज्ञेय
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16:40, 19 जुलाई 2012
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|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=इत्यलम् / अज्ञेय
}}
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भव सारा तुझपर है स्वाहा सब कुछ तप कर अंगार बने-
तेरी पुकार सा दुर्निवार मेरा यह नीरव प्यार बने
'''बड़ोदरा, 15 जुलाई, 1937'''
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