{{KKRachna
|रचनाकार=गीत चतुर्वेदी
|संग्रह=आलाप में गिरह / गीत चतुर्वेदी
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{{KKCatKavita}}<poem>
जाने कितनी बार टूटी लय
जाने कितनी बार जोड़े सुर
हर आलाप में गिरह पड़ी है
कभी दौड़ पड़े तो थकान नहीं
और कभी बैठे-बैठे ही टप् से गिर पड़ेढह गएमुक़ाबले में इस तरह उतरे कि उसे अगले को दया आ गई
और उसने ख़ुद को ख़ारिज कर लिया
थोड़ी-सी हंसी हँसी चुराई
सबने कहा छोड़ो भी
और हमने छोड़ दिया
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