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"जीवन का मालिन्य / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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+ | कहाँ, कौन है जिस को है मेरी भी कुछ परवाह- | ||
+ | जिस के उर में मेरी कृतियाँ जगा सकें उत्साह? | ||
+ | विश्व-नगर की गलियों में खोये कुत्ते-सा | ||
+ | झंझा की प्रमत्त गति में उलझे पत्ते-सा | ||
+ | हटो, आज इस घृणा-पात्र को जाने भी दो टूट- | ||
+ | भव-बन्धन से साभिमान ही पा लेने दो छूट! | ||
− | ''' | + | '''दिल्ली जेल, 23 अक्टूबर, 1932''' |
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20:08, 30 जुलाई 2012 के समय का अवतरण
जीवन का मालिन्य आज मैं क्यों धो डालूँ?
उर में संचित कलुषनिधि को क्यों खो डालूँ?
कहाँ, कौन है जिस को है मेरी भी कुछ परवाह-
जिस के उर में मेरी कृतियाँ जगा सकें उत्साह?
विश्व-नगर की गलियों में खोये कुत्ते-सा
झंझा की प्रमत्त गति में उलझे पत्ते-सा
हटो, आज इस घृणा-पात्र को जाने भी दो टूट-
भव-बन्धन से साभिमान ही पा लेने दो छूट!
दिल्ली जेल, 23 अक्टूबर, 1932