भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इलाहाबाद में निराला / बोधिसत्व" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
+ | (श्रद्धापूर्वक गुरु एवं हितू स्वर्गीय सत्य प्रकाश मिश्र जी के लिए,जो इलाहाबाद की रौनक थे, शान थे)<br><br> | ||
+ | '''1.<br><br> | ||
इलाहाबाद की बांध रोड पर<br> | इलाहाबाद की बांध रोड पर<br> | ||
भीड़ से घिरा खड़ा था<br> | भीड़ से घिरा खड़ा था<br> |
20:10, 3 अक्टूबर 2007 का अवतरण
(श्रद्धापूर्वक गुरु एवं हितू स्वर्गीय सत्य प्रकाश मिश्र जी के लिए,जो इलाहाबाद की रौनक थे, शान थे)
1.
इलाहाबाद की बांध रोड पर
भीड़ से घिरा खड़ा था
वह दिशाहारा
हर तरफ़ कुहरा घना था
जाड़े की रात थी
नीचे था पारा ।
तन पर तहमद के अलावा
कुछ नहीं था शेष
जटा-जूट उलझी दाढ़ी
चमरौधा पहने वह
फिर रहा था मारा-मारा ।
कई दिनों से भूखा था वह
अपनों का दुत्कारा
भूल गया था वह कैसे
जाता है पुकारा ।
वह चुप था नीची किए आँख
सुनता था न समझता था,
छाई थी चंहुदिस सघन रात ।
कुछ ने पहचाना उसको
कुछ ने कहा है मतवाला
पर कोलाहाल में गूँज रहा था बस
निराला...निराला...निराला ।