{{KKRachna
|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=हरी घास पर क्षण भर / अज्ञेय; सन्नाटे का छन्द / अज्ञेय
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भोर बेला--नदी तट की घंटियों का नाद।
नहीं, मुझ को नहीं अपने दर्द का अभिमान---
मानता हूँ मैं पराजय है तुम्हारी याद।
'''काशी, 14 नवम्बर, 1946'''
</poem>