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कतकी पूनो / अज्ञेय
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{{KKRachna
|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=
हरी घास पर क्षण भर / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavita}}
मन में दुबकी है हुलास ज्यों परछाईं हो चोर की--
तेरी बाट अगोरते ये आँखें हुईं चकोर की !
'''इलाहाबाद-लखनऊ (रेल में), 30 नवम्बर, 1947'''
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