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"जब पपीहे ने पुकारा / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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जब पपीहे ने पुकारा- मुझे दीखा। | जब पपीहे ने पुकारा- मुझे दीखा। | ||
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12:43, 6 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
जब पपीहे ने पुकारा-- मुझे दीखा--
दो पँखुरियाँ झरीं गुलाब की, तकती पियासी
पिया-से ऊपर झुके उस फ़ूल को
ओठ ज्यों ओठों तले।
मुकुर मे देखा गया हो दृश्य पानीदार आँखों के।
हँस दिया मन दर्द से--
’ओ मूढ! तूने अब तलक कुछ नहीं सीखा।’
जब पपीहे ने पुकारा- मुझे दीखा।
इलाहाबाद, १ अगस्त, १९४८