लेखक: [[अज्ञेय]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=अज्ञेय]]|संग्रह=इन्द्र-धनु रौंदे हुए थे / अज्ञेय}}{{KKCatKavita}}<poem>खोज़ में जब निकल ही आया सत्य तो बहुत मिले ।
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~कुछ नये कुछ पुराने मिले कुछ अपने कुछ बिराने मिले कुछ दिखावे कुछ बहाने मिले कुछ अकड़ू कुछ मुँह-चुराने मिले कुछ घुटे-मँजे सफेदपोश मिले कुछ ईमानदार ख़ानाबदोश मिले ।
कुछ ने लुभाया कुछ ने डराया कुछ ने परचाया- कुछ ने भरमाया- सत्य तो बहुत मिले खोज़ में जब निकल ही आया<br>सत्य तो बहुत मिले ।<br><br>
कुछ नये पड़े मिले कुछ पुराने खड़े मिले<br>कुछ अपने कुछ बिराने झड़े मिले<br>कुछ दिखावे कुछ बहाने सड़े मिले<br>कुछ अकड़ू निखरे कुछ मुँह-चुराने मिले<br>बिखरे कुछ घुटे-मँजे सफेदपोश मिले<br>धुँधले कुछ सुथरे कुछ ईमानदार ख़ानाबदोश मिले सब सत्य रहे कहे, अनकहे ।<br><br>
कुछ ने लुभाया<br>कुछ ने डराया<br>कुछ ने परचाया-<br>कुछ ने भरमाया-<br>खोज़ में जब निकल ही आया सत्य तो बहुत मिले<br>खोज़ पर तुम नभ के तुम कि गुहा-गह्वर के तुम मोम के तुम, पत्थर के तुम तुम किसी देवता से नहीं निकले: तुम मेरे साथ मेरे ही आँसू में जब निकल गले मेरे ही आया रक्त पर पले अनुभव के दाह पर क्षण-क्षण उकसती मेरी अशमित चिता पर तुम मेरे ही साथ जले ।<br><br>
कुछ पड़े मिले<br>तुम- कुछ खड़े मिले<br>तुम्हें तो कुछ झड़े मिले<br>भस्म हो कुछ सड़े मिले<br>मैंने फिर अपनी भभूत में पाया कुछ निखरे कुछ बिखरे<br>अंग रमाया कुछ धुँधले कुछ सुथरे<br>सब सत्य रहे<br>कहे, अनकहे तभी तो पाया ।<br><br>
खोज़ में जब निकल ही आया<br>, सत्य तो बहुत मिले<br>पर तुम<br>नभ के तुम कि गुहा-गह्वर के तुम<br>मोम के तुम, पत्थर के तुम<br>तुम किसी देवता से नहीं निकले:<br>तुम मेरे साथ मेरे ही आँसू में गले<br>मेरे ही रक्त पर पले<br>अनुभव के दाह पर क्षण-क्षण उकसती<br>मेरी अशमित चिता पर<br>तुम मेरे एक ही साथ जले पाया ।<br><br>
तुम-<br>तुम्हें तो<br>भस्म हो<br>मैंने फिर अपनी भभूत '''काशी (रेल में पाया<br>अंग रमाया<br>तभी तो पाया ।<br><br> खोज़ में जब निकल ही आया),<br>15 फरवरी, 1954'''सत्य तो बहुत मिले-<br>एक ही पाया ।<br><br/poem>