Changes

शब्द और सत्य / अज्ञेय

152 bytes added, 05:15, 9 अगस्त 2012
{{KKRachna
|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=अरी ओ करुणा प्रभामय / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
यह नहीं कि मैं ने सत्य नहीं पाया था
यह नहीं कि मुझ को शब्द अचानक कभी-कभी मिलता है :
दोनों जब-तब सम्मुख आते ही रहते हैं।
प्रश्न यही रहता है :
दोनों जो अपने बीच एक दीवार बनाये रहते हैं
मैं कब, कैसे, उन के अनदेखे
उस में सेंध लगा दूँ
या भर कर विस्फोटक
उसे उड़ा दूँ।
यह नहीं कि मैं ने सत्य नहीं पाया था<br>कवि जो होंगे हों, जो कुछ करते हैं, करें, यह नहीं कि मुझ को शब्द अचानक कभी-कभी मिलता प्रयोजन मेरा बस इतना है :<br>दोनों जब-तब सम्मुख आते ही रहते हैं।<br>प्रश्न यही रहता है :<br>ये दोनों जो अपने बीच सदा एक दीवार बनाये -दूसरे से तन कर रहते हैं<br>, मैं कब, कैसे, उन के अनदेखे<br>उस किस आलोक-स्फुरण में सेंध लगा दूँ<br>या भर कर विस्फोटक<br>इन्हें मिला दूँ— उसे उड़ा दूँ।<br><br>दोनों जो हैं बन्धु, सखा, चिर सहचर मेरे।
कवि जो होंगे हों'''मोती बाग, जो कुछ करते हैंनयी दिल्ली, करें15 जून,<br>1957'''प्रयोजन मेरा बस इतना है :<br>ये दोनों जो<br>सदा एक-दूसरे से तन कर रहते हैं,<br>कब, कैसे, किस आलोक-स्फुरण में<br>इन्हें मिला दूँ—<br>दोनों जो हैं बन्धु, सखा, चिर सहचर मेरे।<br/poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits