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खिसक गयी है धूप / अज्ञेय

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|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ / अज्ञेय
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<Poem>
 
पैताने से धीरे-धीरे
खिसक गयी है धूप।
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