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पंडिज्जी / अज्ञेय

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{{KKRachna
|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=नदी की बाँक पर छाया / अज्ञेय
}}
 {{KKCatKavita}}
<poem>
 
अरे भैया, पंडिज्जी ने पोथी बन्द कर दी है।
पंडिज्जी ने चश्मा उतार लिया है
फ़कत आदमी हैं।
'''नयी दिल्ली, अप्रैल, 1980'''
</poem>
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