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विचार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

3 bytes removed, 11:40, 10 सितम्बर 2012
तुम्हें रो कर पुकारा करता हूँ--
खड्ग धारण करो प्रेमिक मेरे,
न्याय करो !!!
फिर अचरज से देखता हूँ,
यह क्या !!!कहाँ है तुम्हारा न्यायालय ???
जननी का स्नेह-अश्रु झरा करता है
उनकी उग्रता पार,
प्रणयी का आसीम विशवासअसीम विश्वास
ग्रास कर लेता है उनके विद्रोह शेल को अपने क्षत वक्षस्थल में.
प्रेमिक मेरे,
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