"सुनो अदीब (कविता) / अशोक तिवारी" के अवतरणों में अंतर
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+ | '''गुजरात नरसंहार में बेकरी में लोगों को ज़िंदा जलाए जाने पर''' | ||
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सुनो अदीब | सुनो अदीब | ||
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सुनना चाहोगे क्या तुम | सुनना चाहोगे क्या तुम | ||
वक़्त होगा | वक़्त होगा | ||
− | एक रूह से | + | एक रूह से गुफ़्तगू के लिए |
तुम्हारे पास | तुम्हारे पास | ||
− | + | माँग रही है मेरी रूह जवाब | |
उसी दिन से अदीब | उसी दिन से अदीब | ||
− | जब मेरे | + | जब मेरे ज़िस्म के टुकड़े-टुकड़े करके |
झोंक दिया गया था बेकरी में | झोंक दिया गया था बेकरी में | ||
− | में कैसे | + | में कैसे करूँ खुलासा |
वहशियों का वहशीपन | वहशियों का वहशीपन | ||
− | उनकी | + | उनकी नाफ़र्मानियों और कुकृत्यों का |
की किस तरह दरिंदों ने | की किस तरह दरिंदों ने | ||
त्रिशूल घोंपा | त्रिशूल घोंपा | ||
अब्बू की अंतड़ियों में | अब्बू की अंतड़ियों में | ||
अम्मी का बुरका | अम्मी का बुरका | ||
− | जान की | + | जान की फ़जीहत बन गया किस तरह |
− | जब उसे कसकर | + | जब उसे कसकर बाँधा गया |
− | उनके | + | उनके मुँह पर |
काट दिया स्तनों को | काट दिया स्तनों को | ||
− | तब दूध नहीं | + | तब दूध नहीं ख़ून की नदियाँ बही थीं अदीब |
तड़पती अम्मी की आँखों के सामने | तड़पती अम्मी की आँखों के सामने | ||
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मेरी ओर बढ़ने वाले | मेरी ओर बढ़ने वाले | ||
हाथों ने किस तरह | हाथों ने किस तरह | ||
− | मैदा में सने मेरे हाथों को | + | मैदा में सने मेरे हाथों को बाँधकर |
मेरे जिस्म को हैवानियत का शिकार बनाया | मेरे जिस्म को हैवानियत का शिकार बनाया | ||
− | और | + | और भोग-लिप्सा के बाद .... |
मैं आखिरी चीज़ थी जिसे | मैं आखिरी चीज़ थी जिसे | ||
भूना गया बेकरी में | भूना गया बेकरी में | ||
देख सकते हो अदीब | देख सकते हो अदीब | ||
− | आज भी | + | आज भी वहाँ जाकर |
− | + | जहाँ बिखरी पड़ी हैं अम्मी कि टूटी चूड़ियाँ | |
− | अब्बू के गले का | + | अब्बू के गले का ताबीज़ |
− | मेरी उन | + | मेरी उन क़िताबों का ढेर |
जिनमें मैंने पढ़ी थीं | जिनमें मैंने पढ़ी थीं | ||
सभी इंसानों के बराबर होने कि बातें | सभी इंसानों के बराबर होने कि बातें | ||
पंक्ति 56: | पंक्ति 58: | ||
मेरी रूह | मेरी रूह | ||
मेरी ही रूह को | मेरी ही रूह को | ||
− | मुझसे | + | मुझसे ज़ुदा किया गया |
मेरे वुजूद को | मेरे वुजूद को | ||
ख़त्म किया गया | ख़त्म किया गया | ||
पंक्ति 63: | पंक्ति 65: | ||
क्यों, अदीब क्यों | क्यों, अदीब क्यों | ||
..........?? | ..........?? | ||
+ | |||
अपने कानों को बंद मत करो | अपने कानों को बंद मत करो | ||
अदीब, हथेली हटाओ | अदीब, हथेली हटाओ | ||
पंक्ति 69: | पंक्ति 72: | ||
मुझे भी सुनो...!!! | मुझे भी सुनो...!!! | ||
................. | ................. | ||
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16/08/2002 | 16/08/2002 | ||
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18:25, 16 सितम्बर 2012 के समय का अवतरण
गुजरात नरसंहार में बेकरी में लोगों को ज़िंदा जलाए जाने पर
सुनो अदीब
अदीब !
सुनना चाहोगे क्या तुम
वक़्त होगा
एक रूह से गुफ़्तगू के लिए
तुम्हारे पास
माँग रही है मेरी रूह जवाब
उसी दिन से अदीब
जब मेरे ज़िस्म के टुकड़े-टुकड़े करके
झोंक दिया गया था बेकरी में
में कैसे करूँ खुलासा
वहशियों का वहशीपन
उनकी नाफ़र्मानियों और कुकृत्यों का
की किस तरह दरिंदों ने
त्रिशूल घोंपा
अब्बू की अंतड़ियों में
अम्मी का बुरका
जान की फ़जीहत बन गया किस तरह
जब उसे कसकर बाँधा गया
उनके मुँह पर
काट दिया स्तनों को
तब दूध नहीं ख़ून की नदियाँ बही थीं अदीब
तड़पती अम्मी की आँखों के सामने
मुझे किस तरह नंगा किया गया अदीब
क्या तुम जानना चाहोगे
सुनना चाहोगे मुझे कि
मेरी ओर बढ़ने वाले
हाथों ने किस तरह
मैदा में सने मेरे हाथों को बाँधकर
मेरे जिस्म को हैवानियत का शिकार बनाया
और भोग-लिप्सा के बाद ....
मैं आखिरी चीज़ थी जिसे
भूना गया बेकरी में
देख सकते हो अदीब
आज भी वहाँ जाकर
जहाँ बिखरी पड़ी हैं अम्मी कि टूटी चूड़ियाँ
अब्बू के गले का ताबीज़
मेरी उन क़िताबों का ढेर
जिनमें मैंने पढ़ी थीं
सभी इंसानों के बराबर होने कि बातें
गुजरात,
मेरी ज़मीन थी अदीब
हिंदुस्तान
मेरी रूह
मेरी ही रूह को
मुझसे ज़ुदा किया गया
मेरे वुजूद को
ख़त्म किया गया
मेरी ज़मीन से
मेरे वतन से
क्यों, अदीब क्यों
..........??
अपने कानों को बंद मत करो
अदीब, हथेली हटाओ
सुनो अदीब, सुनो
मुझे सुनो
मुझे भी सुनो...!!!
.................
16/08/2002