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"धरा तरबूज दो फाँक / सत्यनारायण सोनी" के अवतरणों में अंतर
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'मसल कर अपने इरादों-सी उठाकर | 'मसल कर अपने इरादों-सी उठाकर | ||
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सुनकर मुस्कुराई वह | सुनकर मुस्कुराई वह | ||
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01:06, 22 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
गूगल अर्थ पर
'अर्थ' को गोल-गोल घुमाते हुए
बिटिया को याद आई अचानक
माखनलाल चतुर्वेदी की काव्य-पंक्तियाँ-
'मसल कर अपने इरादों-सी उठाकर
दो हथेली हैं कि पृथ्वी गोल कर दे?'
और उसने ज़ाहिर कर दी
पूरी कविता सुनने की जिज्ञासा ।
तब मैंने सुनाई मात्र यह पंक्ति उसे-
'धरा? यह तरबूज है दो फाँक कर दे ।'
सुनकर मुस्कुराई वह
और माऊस को हल्का-सा टर्न देकर
एक बार और जोर से घुमाया
और छोड़ दिया
देर तक घूमने के लिए 'धरा' को।
सोचा,
इस तरह भी याद आती हैं कविताएँ!