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+ | * [[हे मेघ, मित्रता के कारण, अथवा मैं विरही / कालिदास]] |
15:40, 28 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
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मेघदूत | |
| |
रचनाकार: | कालिदास |
अनुवादक: | |
प्रकाशक: | |
वर्ष: | |
मूल भाषा: | संस्कृत |
विषय: | -- |
शैली: | -- |
पृष्ठ संख्या: | |
ISBN: | |
विविध: | |
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पूर्वमेघ
- कोई यक्ष था / कालिदास
- स्त्री के विछोह में / कालिदास
- यक्षपति का वह अनुचर / कालिदास
- जब सावन पास आ गया / कालिदास
- धुएँ, पानी, धूप और हवा का / कालिदास
- पुष्कर और आवर्तक / कालिदास
- जो सन्तप्त हैं / कालिदास
- जब तुम आकाश में उमड़ते हुए उठोगे / कालिदास
- अनुकूल वायु तुम्हें धीमे-धीमे चला रही / कालिदास
- विरह के दिन गिनने में संलग्न / कालिदास
- जिसके प्रभाव से पृथ्वी / कालिदास
- अब अपने प्यारे सखा / कालिदास
- हे मेघ, पहले तो अपनी यात्रा के लिए / कालिदास
- क्या वायु कहीं पर्वत की चोटी ही / कालिदास
- चम-चम करते रत्नों की झिलमिल ज्योति-सा / कालिदास
- खेती का फल तुम्हारे अधीन / कालिदास
- वन में लगी हुई अग्नि को / कालिदास
- पके फलों से दिपते हुए जंगली आमवृक्ष / कालिदास
- उस पर्वत पर जहाँ कुंजों में / कालिदास
- जब तुम वृष्टि द्वारा अपना जल / कालिदास
- हे मेघ, जल की बूँदें बरसाते हुए / कालिदास
- हे मित्र, मेरे प्रिय / कालिदास
- हे मेघ, तुम निकट आए / कालिदास
- उस देश की दिगन्तों में विख्यात / कालिदास
- विश्राम के लिए वहाँ निचले पर्वत पर / कालिदास
- विश्राम कर लेने पर वन-नदियों के किनारों / कालिदास
- उत्तर दिशा की ओर जानेवाले / कालिदास
- लहरों के थपेड़ों से किलकारी भरते हुए / कालिदास
- जिसकी पतली जलधारा वेणी बनी हुई / कालिदास
- गाँवों के बड़े-बूढ़े जहाँ / कालिदास
- जहाँ प्रात:काल शिप्रा का पवन / कालिदास
- उज्जयिनी में स्त्रियों के केश सुवासित / कालिदास
- अपने स्वामी के नीले कंठ से / कालिदास
- हे जलधर, यदि महाकाल के मन्दिर में / कालिदास
- वहाँ प्रदोष-नृत्य के समय पैरों की ठुमकन / कालिदास
- आरती पश्चात् शिव के तांडव-नृत्य में / कालिदास
- वहाँ उज्जयिनी में रात के समय प्रियतम / कालिदास
- देर तक बिलसने से जब तुम्हारी / कालिदास
- रात्रि में बिछोह सहनेवाली / कालिदास
- गम्भीरा के चित्तरूपी निर्मल जल में / कालिदास
- हे मेघ, गम्भीरा के तट से हटा हुआ / कालिदास
- हे मेघ, तुम्हारी झड़ी पड़ने से / कालिदास
- हे मेघ, अपने शरीर को पुष्प-वर्षी बना / कालिदास
- उस पर्वत की कन्दराओं में गूँजकर / कालिदास
- सरकंडों के वन में जन्म लेनेवाले / कालिदास
- हे मेघ, विष्णु के समान श्यामवर्ण तुम / कालिदास
- उस नदी को पार करके अपने शरीर को / कालिदास
- उसके बाद ब्रह्मावर्त जनपद के ऊपर / कालिदास
- कौरवों और पांडवों के प्रति समान स्नेह / कालिदास
- वहाँ से आगे कनखल में शैलराज / कालिदास
- आकाश में दिशाओं के हाथी की भाँति / कालिदास
- वहाँ आकर बैठनेवाले कस्तूरी मृग / कालिदास
- जंगली हवा चलने पर देवदारु के तन / कालिदास
- यदि वहाँ हिमालय में कुपित होकर वेग से / कालिदास
- वहाँ चट्टान पर शिवजी के पैरों की छाप / कालिदास
- वहाँ पर हवाओं के भरने से / कालिदास
- हिमालय के बाहरी अंचल में / कालिदास
- वहाँ से आगे बढ़कर कैलास पर्वत के / कालिदास
- हे मेघ, चिकने घुटे हुए अंजन की शोभा / कालिदास
- जिस पर लिपटा हुआ सर्परूपी कंगन / कालिदास
- वहाँ कैलास पर सुर-युवतियाँ / कालिदास
- हे मेघ, अपने मित्र कैलास पर / कालिदास
- हे कामचारी मेघ / कालिदास
उत्तरमेघ
- अलका के महल अपने इन-इन गुणों से / कालिदास
- वहाँ अलका की वधुएँ षड्ऋतुओं के फूलों से / कालिदास
- वहाँ पत्थर के बने हुए महलों के उन / कालिदास
- देवता चाहते हैं, ऐसी रूपवती कन्याएँ / कालिदास
- वहाँ अलका में कामी प्रियतम अपने / कालिदास
- उस अलका के सतखंडे महलों की ऊँची / कालिदास
- वहाँ अलका में आधी रात के समय / कालिदास
- वहाँ अलका में कामी जन अपने महलों के / कालिदास
- वहाँ अलका में प्रात: सूर्योदय के समय / कालिदास
- वहाँ अलका में कुबेर के मित्र शिवजी को / कालिदास
- वहाँ अलका में पहनने के लिए रंगीन वस्त्र / कालिदास
- उस अलका में कुबेर के भवन से उत्तर / कालिदास
- मेरे उस घर में एक बावड़ी है जिसमें / कालिदास
- उस बावड़ी के किनारे एक क्रीड़ा-पर्वत / कालिदास
- उस क्रीड़ा-शैल में कुबरक की बाढ़ से घिरा / कालिदास
- उन दो वृक्षों के बीच में सोने की बनी / कालिदास
- हे चतुर, ऊपर बताए इन लक्षणों को / कालिदास
- हे मेघ, सपाटे के साथ तुम नीचे उतरो / कालिदास
- छरहरी देह की उठते हुए यौवनवाली / कालिदास
- मेरे दूर चले आने के कारण अपने साथी से / कालिदास
- लगातार रोने से नेत्र सूज गए हैं उसके / कालिदास
- हे मेघ, वह मेरी पत्नी या तो देवताओं की / कालिदास
- हे सौम्य, फिर मलिन वस्त्र पहने हुए गोद / कालिदास
- वियोगिनी की काम दशा, संकल्प / कालिदास
- चित्र-लेखन या वीणा बजाने आदि में व्यस्त / कालिदास
- मानसिक सन्ताप के कारण तन-क्षीण बनी / कालिदास
- जाली में से भीतर आती हुई चन्द्रमा की / कालिदास
- रूखे स्नान के कारण खुरखुरी एक घुँघराली / कालिदास
- विरह के पहले दिन जो वेणी चुटीले के बिना / कालिदास
- वह अबला आभूषण त्यागे हुए अपने / कालिदास
- मैं जानता हूँ कि तुम्हारी उस सखी के मन में / कालिदास
- मुँह पर लटक आनेवाले बाल जिसकी / कालिदास
- और भी, रस-भरे केले के खम्भे के रंग-सा / कालिदास
- हे मेघ, यदि उस समय वह नींद का सुख ले / कालिदास
- हे मेघ, फुहार, उड़ाती हुई ठंडी वायु से उसे / कालिदास
- हे सुहागिनी, मैं तुम्हारे स्वामी का सखा / कालिदास
- जब तुम इतना कह चुकोगे, तब वह / कालिदास
- चिरजीवी मित्र, मेरे कहने से और अपनी / कालिदास
- दूर गया हुआ तुम्हारा वह सहचर / कालिदास
- सखियों के सामने भी जो बात मुख से / कालिदास
- हे प्रिया, प्रियंगु लता में तुम्हारे शरीर / कालिदास
- हे प्रिया, प्रेम में रूठी हुई तुम गेरू के रंग से / कालिदास
- हे प्रिया, स्वप्न दर्शन के बीच जब तुम मुझे / कालिदास
- हे गुणवती प्रिये, देवदारु वृक्षों के / कालिदास
- हे चंचल कटाक्षोंवाली प्रिया / कालिदास
- हे प्रिया, और भी सुन तू भाँति-भाँति की / कालिदास
- जब विष्णु शेष की शय्या त्याग उठेंगे / कालिदास
- तुम्हारे पति ने इतना और कहा है मुझसे / कालिदास
- इस पहचान से मुझे सकुशल समझ लेना / कालिदास
- पहली बार विरह के तीव्र शोक की दु:खिनी / कालिदास
- हे प्रिय मित्र, क्या तुमने निज बन्धु का यह / कालिदास
- हे मेघ, मित्रता के कारण, अथवा मैं विरही / कालिदास