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चंद शेर / बशीर बद्र

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कवि: [[बशीर बद्र]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=बशीर बद्र]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~}}<poem>
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
 
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये ।
--
ज़िन्दगी तूनें तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं  पाँव फ़ैलाऊँ फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है । --
जी बहुत चाहता है सच बोलें
 
क्या करें हौसला नहीं होता ।
--
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे
 
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।
--
एक दिन तुझ से मिलनें ज़रूर आऊँगा
 
ज़िन्दगी मुझ को तेरा पता चाहिये ।
--
इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी
 
लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे ।
--
वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का हिस्सा है
 कोई जो दूसरा पहनें पहने तो दूसरा ही लगे । -- लोग टूट जाते हैं एक घर बनानें बनाने में  तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ बस्तियां जलानें में। --
पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी,
 आँखो आँखों को अभी ख्वाब छुपानें छुपाने नहीं आते । --
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था.
 फ़िर फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला । --  मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है  मगर उस नें मुझे चाहा बहुत है । --
मैं इतना बदमुआश नहीं यानि खुल के बैठ
 चुभनें चुभने लगी है धूप तो स्वेटर उतार दे ।</poem>
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