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"ज़र्द गुलाबों की ख़ातिर भी रोता है / ज़हीर रहमती" के अवतरणों में अंतर

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16:56, 26 फ़रवरी 2013 के समय का अवतरण

ज़र्द गुलाबों की ख़ातिर भी रोता है
कौन यहाँ पर मैले कपड़े धोता है

जिस के दिल में हरयाली सी होती है
सब के सर का बोझ वही तो ढ़ोता है

सतही लोगों में गहराई होती है
ये डूबे तो पानी गहरा होता है

सदियों में कोई एक मोहब्बत होती है
बाक़ी तो सब खेल तमाशा होता है

दुख होता है वक़्त-ए-रवाँ के ठहरने से
ख़ुश होने को वही बहाना होता है

शरमाते रहते हैं गहरे लोग सभी
दरिया भी तो पानी पानी होता है

नूर टपकता है ज़ालिम के चेहरे से
देखो तो लगता है कोई सोता है