|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
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देश में जिधर भी जाता हूँ,
उधर ही एक आह्वान सुनता हूँ
"जड़ता को तोड़ने के लिए
भूकम्प लाओ ।
घुप्प अँधेरे में फिर
अपनी मशाल जलाओ ।
पूरे पहाड़ हथेली पर उठाकर
पवनकुमार के समान तरजो ।
कोई तूफ़ान उठाने को
कवि, गरजो, गरजो, गरजो !"
देश में जिधर भी जाता सोचता हूँ,<br>मैं कब गरजा था ?उधर ही एक आह्वान सुनता हूँ<br>जिसे लोग मेरा गर्जन समझते हैं,"जडता को तोडने के लिए<br>भूकम्प लाओ।<br>घुप्प अँधेरे वह असल में फिर<br>गाँधी का था,अपनी मशाल जलाओ।<br>पूरे पहाड हथेली पर उठाकर<br>पवनकुमार के समान तरजो।<br>कोई तूफान उठाने को<br>कवि, गरजो, गरजोउस गाँधी का था, गरजो !"<br><br>जिस ने हमें जन्म दिया था ।
सोचता हूँ, मैं कब गरजा था?<br>तब भी हम ने गाँधी केजिसे लोग मेरा गर्जन समझते हैंतूफ़ान को ही देखा,<br>वह असल में गाँधी का था,<br>उस गाँधी का था, जिस ने हमें जन्म दिया था।<br><br>को नहीं ।
तब भी हम ने गाँधी वे तूफ़ान और गर्जन के<br>तूफान को ही देखा,<br>पीछे बसते थे ।गाँधी सच तो यह हैकि अपनी लीला मेंतूफ़ान और गर्जन को नहीं।<br><br>शामिल होते देखवे हँसते थे ।
वे तूफान और गर्जन के<br>तूफ़ान मोटी नहीं,पीछे बसते थे।<br>सच तो यह महीन आवाज़ से उठता है<br>।कि अपनी लीला वह आवाज़जो मोम के दीप के समानएकान्त में<br>जलती है,तूफान और गर्जन को<br>बाज नहीं,शामिल होते देख<br>वे हँसते थे।<br><br>कबूतर के चाल से चलती है ।
तूफान मोटी नहीं,<br>महीन आवाज से उठता है।<br>वह आवाज<br>जो मोम के दीप के समान<br>एकान्त में जलती है,<br>और बाज नहीं,<br>कबूतर के चाल से चलती है।<br><br> गाँधी तूफान तूफ़ान के पिता<br>और बाजों के भी बाज थे।<br>थे ।
क्योंकि वे नीरवताकी आवाज थे।
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