कवि: [[धर्मवीर भारती]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=धर्मवीर भारती]]|संग्रह= }}{{KKAnthologyDeath}}{{KKCatKavita}}<poem>दूर देश में किसी विदेशी गगन खंड के नीचेसोये होगे तुम किरनों के तीरों की शैय्या परमानवता के तरुण रक्त से लिखा संदेशा पाकरमृत्यु देवताओं ने होंगे प्राण तुम्हारे खींचे
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*प्राण तुम्हारे धूमकेतु से चीर गगन पट झीनाजिस दिन पहुंचे होंगे देवलोक की सीमाओं परअमर हो गई होगी आसन से मौत मूर्च्छिता होकरऔर फट गया होगा ईश्वर के मरघट का सीना
दूर देश में किसी विदेशी गगन खंड के नीचे<br>और देवताओं ने ले कर ध्रुव तारों की टेक -सोये होगे छिड़के होंगे तुम किरनों के तीरों की शैय्या पर<br>मानवता तरुनाई के तरुण रक्त से लिखा संदेशा पाकर<br>खूनी फूलमृत्यु देवताओं खुद ईश्वर ने होंगे प्राण तुम्हारे खींचे<br><br>चीर अंगूठा अपनी सत्ता भूलउठ कर स्वयं किया होगा विद्रोही का अभिषेक
प्राण तुम्हारे धूमकेतु से चीर गगन पट झीना<br>जिस दिन पहुंचे होंगे देवलोक की सीमाओं पर<br>अमर हो गई होगी आसन से मौत मूर्च्छिता होकर<br>और फट गया होगा ईश्वर के मरघट का सीना<br><br> और देवताओं ने ले कर ध्रुव तारों की टेक -<br>छिड़के होंगे तुम पर तरुनाई के खूनी फूल<br>खुद ईश्वर ने चीर अंगूठा अपनी सत्ता भूल<br>उठ कर स्वयं किया होगा विद्रोही का अभिषेक<br><br> किंतु स्वर्ग से असंतुष्ट तुम, यह स्वागत का शोर<br>धीमे-धीमे जबकि पड़ गया होगा बिलकुल शांत<br>और रह गया होगा जब वह स्वर्ग देश<br>खोल कफ़न ताका होगा तुमने भारत का भोर।<br/poem>