लेखक: [[सर्वेश्वरदयाल सक्सेना]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=सर्वेश्वरदयाल सक्सेना]]}}{{KKCatKavita}}<poem>हल की तरहकुदाल की तरहया खुरपी की तरहपकड़ भी लूँ कलम तोफिर भी फसल काटनेमिलेगी नहीं हम को ।
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~हम तो ज़मीन ही तैयार कर पायेंगेक्रांतिबीज बोने कुछ बिरले ही आयेंगेहरा-भरा वही करेंगें मेरे श्रम कोसिलसिला मिलेगा आगे मेरे क्रम को ।
हल की तरह<br>कुदाल की तरह<br>या खुरपी की तरह<br>पकड़ भी लूँ कलम तो<br>फिर भी फसल काटने<br>मिलेगी नहीं हम को ।<br><br> हम तो ज़मीन ही तैयार कर पायेंगे<br>क्रांतिबीज बोने कुछ बिरले ही आयेंगे<br>हरा-भरा वही करेंगें मेरे श्रम को<br>सिलसिला मिलेगा आगे मेरे क्रम को ।<br><br> कल जो भी फसल उगेगी, लहलहाएगी<br>मेरे ना रहने पर भी<br>हवा से इठलाएगी<br>तब मेरी आत्मा सुनहरी धूप बन बरसेगी<br>जिन्होने बीज बोए थे<br>उन्हीं के चरण परसेगी<br>काटेंगे उसे जो फिर वो ही उसे बोएंगे<br>हम तो कहीं धरती के नीचे दबे सोयेंगे ।<br><br>