लेखक: [[सर्वेश्वरदयाल सक्सेना]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=सर्वेश्वरदयाल सक्सेना]] }}{{KKCatGhazal}}<poem>अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई, नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है
अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है<br>होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त द्वार मेरा कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता उस वक्त खटखटाता है<br><br>
जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई,<br>शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है<br><br>
होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त<br>देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं, द्वार मेरा कोई उस वक्त खटखटाता फिर वही रात है<br><br>, फिर-फिर वही सन्नाटा है
शोर उठता है हम कहीं दूर क़ाफिलों का-सा<br>कोई सहमी हुई आवाज़ और चले जाते हैं अपनी धुन में बुलाता रास्ता है कि कहीं और चला जाता है<br><br>
देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं,<br>फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है<br><br> हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में<br>रास्ता है कि कहीं और चला जाता है<br><br> दिल को नासेह की ज़रूरत है न चारागर की<br>आप ही रोता है औ आप ही समझाता है । <br><br/poem>