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"अजनबी देश है यह / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है
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होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त
कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है<br><br>
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शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा
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कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है
  
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देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं,
द्वार मेरा कोई उस वक्त खटखटाता है<br><br>
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फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है 
  
शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा<br>
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हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में  
कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है<br><br>
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रास्ता है कि कहीं और चला जाता है
  
देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं,<br>
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फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है<br><br>
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आप ही रोता है औ आप ही समझाता है ।
 
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दिल को नासेह की ज़रूरत है न चारागर की<br>
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आप ही रोता है औ आप ही समझाता है ।<br><br>
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11:21, 15 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है
कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है

जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई,
नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है

होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त
द्वार मेरा कोई उस वक्त खटखटाता है

शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा
कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है

देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं,
फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है

हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में
रास्ता है कि कहीं और चला जाता है

दिल को नासेह की ज़रूरत है न चारागर की
आप ही रोता है औ आप ही समझाता है ।