भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आज दे वरदान! / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: == आज दे वरदान! == वेदने वह स्नेह-अँचल-छाँह का वरदान! ज्वाल पारावार-सी है, ...) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | == | + | {{KKRachna |
− | + | |रचनाकार=महादेवी वर्मा | |
+ | |संग्रह=दीपशिखा / महादेवी वर्मा | ||
+ | }} | ||
14:07, 15 अक्टूबर 2007 का अवतरण
वेदने वह स्नेह-अँचल-छाँह का वरदान!
ज्वाल पारावार-सी है,
श्रृंखला पतवार-सी है,
बिखरती उर की तरी में
आज तो हर साँस बनती शत शिला के भार-सी है!
स्निग्ध चितवन में मिले सुख का पुलिन अनजान!
तूँबियाँ, दुख-भार जैसी,
खूँटियाँ अंगार जैसी,
ज्वलित जीवन-वीण में अब,
धूम-लेखायें उलझतीं उँगलियों से तार जैसी,
छू इसे फिर क्षार में भर करुण कोमल गान!
अब न कह ‘जग रिक्त है यह’
‘पंक ही से सिक्त है यह’
देख तो रज में अंचचल,
स्वर्ग का युवराज तेरे अश्रु से अभिसिक्त है यह!
अमिट घन-सा दे अखिल रस-रूपमय निर्वाण!
स्वप्न-संगी पंथ पर हो,
चाप का पाथेय भर हो,
तिमिर झंझावात ही में
खोजता इसको अमर गति कीकथा का एक स्वर हो!
यह प्रलय को भेंट कर अपना पता ले जान!
आज दे वरदान!