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"हमारे शह्र में हर अजनबी, इक हमज’बां चाहे / पवन कुमार" के अवतरणों में अंतर

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हमारे शह्र में हर अजनबी, इक हमज’बां चाहे
 
हमारे शह्र में हर अजनबी, इक हमज’बां चाहे
 
मगर कुछ है जो बाशिन्दा यहाँ का दरमियां चाहे
 
मगर कुछ है जो बाशिन्दा यहाँ का दरमियां चाहे

08:24, 27 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण


हमारे शह्र में हर अजनबी, इक हमज’बां चाहे
मगर कुछ है जो बाशिन्दा यहाँ का दरमियां चाहे

उम्मीदें मंज़िलों की अब तो हमको ज़र्द लगती हैं
ख़बर है इस सफर में कारवाँ भी सायबां चाहे

करा दो आशना सच से कि जोखिम है बहुत इसमें
ज़मीं क’दमों से गायब है मगर वो आस्मां चाहे

हम उसकी जि’न्दगी से इस क’दर मानूस हैं या रब
किताबे-ज़िंदगी उसकी हमारी दास्तां चाहे

बहुत बेख़ौफ’ होकर फूल जो सहरा में उगता था
बदलते वक्“त में वो भी ख़ुदा से बाग“वां चाहे

सायबां = छाया, आशना = परिचित, मानूस = परिचित/हिले-मिले, सहरा = खाली मैदान,
बाग“वां = माली