"सबसे अधिक तुम्हीं रोओगे / रामावतार त्यागी" के अवतरणों में अंतर
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− | कुछ कुछ बादल के जैसा हूं; | + | गाने लगा तुम्हारा आंगन; |
− | मेरा गीत सुन सब जागे, तुमको जैसे नींद आ गई, | + | हंसता द्वार, चहकती ड्योढ़ी |
− | लगता मौन प्रतीक्षा में तुम सारी रात नहीं सोओगे ! | + | तुम चुपचाप खड़े किस कारण ? |
− | तुमने मुझे अदेखा कर के | + | मुझको द्वारे तक पहुंचाने सब तो आये, तुम्हीं न आए, |
− | संबंधों की बात खोल दी; | + | लगता है एकाकी पथ पर मेरे साथ तुम्हीं होओगे! |
− | सुख के सूरज की आंखों में | + | |
− | काली काली रात घोल दी; | + | मौन तुम्हारा प्रश्न चिन्ह है, |
− | कल को गर मेरे आंसू की मंदिर में पड़ गई ज़रूरत | + | पूछ रहे शायद कैसा हूं |
− | लगता है आंचल को अपने सबसे अधिक तुम ही धोओगे ! | + | कुछ कुछ बादल के जैसा हूं; |
− | परिचय से पहले ही, बोलो, | + | मेरा गीत सुन सब जागे, तुमको जैसे नींद आ गई, |
− | उलझे किस ताने बाने में ? | + | लगता मौन प्रतीक्षा में तुम सारी रात नहीं सोओगे! |
− | तुम शायद पथ देख रहे थे, | + | |
− | मुझको देर हुई आने में; | + | तुमने मुझे अदेखा कर के |
− | जगभर ने आशीष पठाए, तुमने कोई शब्द न भेजा, | + | संबंधों की बात खोल दी; |
+ | सुख के सूरज की आंखों में | ||
+ | काली काली रात घोल दी; | ||
+ | कल को गर मेरे आंसू की मंदिर में पड़ गई ज़रूरत | ||
+ | लगता है आंचल को अपने सबसे अधिक तुम ही धोओगे! | ||
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+ | परिचय से पहले ही, बोलो, | ||
+ | उलझे किस ताने बाने में ? | ||
+ | तुम शायद पथ देख रहे थे, | ||
+ | मुझको देर हुई आने में; | ||
+ | जगभर ने आशीष पठाए, तुमने कोई शब्द न भेजा, | ||
लगता है तुम मन की बगिया में गीतों का बिरवा बोओगे! | लगता है तुम मन की बगिया में गीतों का बिरवा बोओगे! |
09:13, 30 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण
आने पर मेरे बिजली-सी कौंधी सिर्फ तुम्हारे दृग में
लगता है जाने पर मेरे सबसे अधिक तुम्हीं रोओगे !
मैं आया तो चारण-जैसा
गाने लगा तुम्हारा आंगन;
हंसता द्वार, चहकती ड्योढ़ी
तुम चुपचाप खड़े किस कारण ?
मुझको द्वारे तक पहुंचाने सब तो आये, तुम्हीं न आए,
लगता है एकाकी पथ पर मेरे साथ तुम्हीं होओगे!
मौन तुम्हारा प्रश्न चिन्ह है,
पूछ रहे शायद कैसा हूं
कुछ कुछ बादल के जैसा हूं;
मेरा गीत सुन सब जागे, तुमको जैसे नींद आ गई,
लगता मौन प्रतीक्षा में तुम सारी रात नहीं सोओगे!
तुमने मुझे अदेखा कर के
संबंधों की बात खोल दी;
सुख के सूरज की आंखों में
काली काली रात घोल दी;
कल को गर मेरे आंसू की मंदिर में पड़ गई ज़रूरत
लगता है आंचल को अपने सबसे अधिक तुम ही धोओगे!
परिचय से पहले ही, बोलो,
उलझे किस ताने बाने में ?
तुम शायद पथ देख रहे थे,
मुझको देर हुई आने में;
जगभर ने आशीष पठाए, तुमने कोई शब्द न भेजा,
लगता है तुम मन की बगिया में गीतों का बिरवा बोओगे!