भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इफ़्तिख़ार आरिफ़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
|मृत्यु= | |मृत्यु= | ||
|कृतियाँ=मेह्र-ए-दोनीम, हर्फ़-इ-बर्याब, जहान-ए-मालूम, क़िताब-ए-दिल-ओ-दुनिया | |कृतियाँ=मेह्र-ए-दोनीम, हर्फ़-इ-बर्याब, जहान-ए-मालूम, क़िताब-ए-दिल-ओ-दुनिया | ||
− | |विविध=पाकिस्तान की साहित्य अकादमी और राष्ट्रीय भाषा विभाग के अध्यक्ष रहे। ’हिलाला-ए-इमतियाज़’ (2005) और ’सितारा-ए-इमतियाज़’(1999) | + | |विविध=पाकिस्तान की साहित्य अकादमी और राष्ट्रीय भाषा विभाग के अध्यक्ष रहे। ’हिलाला-ए-इमतियाज़’ (2005) और ’सितारा-ए-इमतियाज़’(1999) नक़ूश पुरस्कार (1994), बाबा-ए-उर्दू मौलवी अब्दुल हक़ कविता पुरस्कार (1995) जैसे महत्त्वपूर्ण पाकिस्तानी राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाज़े जा चुके हैं। |
|जीवनी=[[इफ़्तिख़ार आरिफ़ / परिचय]] | |जीवनी=[[इफ़्तिख़ार आरिफ़ / परिचय]] | ||
|अंग्रेज़ीनाम=Iftikhar Arif | |अंग्रेज़ीनाम=Iftikhar Arif |
04:31, 2 मई 2013 के समय का अवतरण
इफ़्तिख़ार आरिफ़
जन्म | 21 मार्च 1943 |
---|---|
उपनाम | इफ़्तिख़ार हुसैन आरिफ़ |
जन्म स्थान | लखनऊ, उत्तरप्रदेश |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
मेह्र-ए-दोनीम, हर्फ़-इ-बर्याब, जहान-ए-मालूम, क़िताब-ए-दिल-ओ-दुनिया | |
विविध | |
पाकिस्तान की साहित्य अकादमी और राष्ट्रीय भाषा विभाग के अध्यक्ष रहे। ’हिलाला-ए-इमतियाज़’ (2005) और ’सितारा-ए-इमतियाज़’(1999) नक़ूश पुरस्कार (1994), बाबा-ए-उर्दू मौलवी अब्दुल हक़ कविता पुरस्कार (1995) जैसे महत्त्वपूर्ण पाकिस्तानी राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाज़े जा चुके हैं। | |
जीवन परिचय | |
इफ़्तिख़ार आरिफ़ / परिचय |
- अब भी तौहीन-ए-इताअत नहीं होगी हम से / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- अज़ाब-ए-वहशत-ए-जाँ का सिला न माँगे कोई / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- दयार-ए-नूर में तीरा-शबों का साथी हो / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- हामी भी न थे मुनकिर-ए-ग़ालिब भी नहीं थे / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- हरीम-ए-लफ़्ज़ में किस दर्जा बे-अदब निकला / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- हिज्र की धूप में छाँव जैसी बातें करते हैं / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- इन्हीं में जीते इन्हीं बस्तियों में मर रहते / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- कहाँ के नाम ओ नसब इल्म क्या फ़ज़ीलत क्या / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- कहीं से कोई हर्फ़-ए-मोतबर शायद न आए / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- ख़्वाब-ए-देरीना से रुख़्सत का सबब पूछते हैं / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- कोई मुज़्दा न बशारत न दुआ चाहती है / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहजे में / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- मेरे ख़ुदा मुझे इतना तो मोतबर कर दे / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- सजल के शोर ज़मीनों में आशियाना करे / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- समझ रहे हैं मगर बोलने का यारा नहीं / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- सुख़न-ए-हक़ को फ़ज़ीलत नहीं मिलने वाली / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- थकन तो अगले सफ़र के लिए बहाना था / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- वही प्यास है वही दश्त है वही घराना है / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- ये बस्ती जानी पहचानी बहुत है / इफ़्तिख़ार आरिफ़
- ज़रा सी देर को आए थे ख़्वाब आँखों में / इफ़्तिख़ार आरिफ़